SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४-भाव व मार्गणा २१८ १-भावाधिकार शृद्ध हो जाते हैं, और कर्म की सत्ता निःशेष हो जाने से पुनः उनके उदय से उनका अशुद्ध होना सम्भव नहीं रहता। (६) क्षायोपशमिक भाव किसको कहते हैं ? जो कर्मों के क्षयोपशम से हो उसको क्षायोपशमिक भाव कहते हैं। जीव का क्षायोपशमिक भाव कैसा होता है ? थोड़ी कादो नीचे बैठ जानेपर और थोड़ी अभी जल में मिली रहने पर, जिस प्रकार पानी कुछ कुछ मैला रहते हुए भी पीने के काम आ सकता है, उसीप्रकार कर्म का क्षयोपशम होने पर सर्वघाती तो बिल्कुल बैठ जाता है, परन्तु देश-घाती का उदय रहता है, जिसके कारण जीव के भाव कुछ कुछ मैले रहते हुए भी उसे सम्यक्त्वादी गुण प्रगट रहते हैं । केवल परिणामों में कुछ चल मल आदि दोष लगते रहते हैं। (८) औदयिक भाव किसको कहते हैं ? जो कर्मों के उदय से हों उन्हें औदयिक भाव कहते है। ६. जीव का औदयिक भाव कैसा होता है ? जिसप्रकार कादो मिला हुआ जल बिल्कुल अशुद्ध होता है, अथवा आकाश पर बादल आने से सूर्य छिप जाता है; उसी प्रकार कर्म के उदय होने पर जीव के सम्यक्त्व व चारित्र बिल्कुल अशुद्ध व विकृत हो जाते हैं और ज्ञानादि गुण ढक जाते हैं। क्षायोपशमिक भाव को भी देशघाती के उदय होने से औदयिक कहना चाहिये ? ठीक है । वहाँ आंशिक रूप से दो भावों का मिश्रण रहता है, कुछ अंश खुला रहता है और कुछ अंश ढका। खुले अंश की अपेक्षा उसे क्षायोपशमिक और ढके अंश की अपेक्षा बेढक कहते हैं, क्योंकि देशघाती की शक्ति का वेदन या अनुभव रहता है । (११) पारिणामिक भाव किसको कहते हैं ? जो उपशम, क्षय, क्षयोपशम व उदय की अपेक्षा न रखता हुआ,
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy