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चरर्थ अध्याय (भाव व मार्गणा) ४/१ भावाधिकार
(१) जीव के असाधारण भाव कितने हैं ?
पांच हैं –औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक और
पारिणामिक। (२) औपशमिक भाव किसको कहते हैं ?
जो किसी कर्म के उपशम से हो उसको औपशमिक भाव
कहते हैं। ३. जीव का औपशमिक भाव कैसा होता है ?
कादो (कीचड) के नीचे बैठ जानेपर जिस प्रकार ऊपर का निथरा हुआ जल उस समय तक बिल्कुल निर्मल व शुद्ध रहता है जब तक हिलने आदि के कारण कादो पुनः उठ न जाये; उसी प्रकार कर्मों का उपशम हो जाने पर जीव के भाव उस समय तक बिल्कुल निर्मल व शुद्ध रहते हैं, जब तक कि उपशम
का काल समाप्त हो जाने से कर्म पुनः उदय में न आ जाये। (४) क्षायिक भाव किसको कहते हैं ?
जो किसी कर्म के क्षय से उत्पन्न हो उसको क्षायिक भाव
कहते हैं। ५. जीव का क्षायिक भाव कैसा होता है ?
कादो के सर्वथा दूर हो जाने पर जिस प्रकार जल बिल्कुल निर्मल व शुद्ध हो जाता है, और कादो की सत्ता निःशेष हो जाने से पुनः उसके मैले होने की सम्भावना नहीं रहती; उसी प्रकार कर्म के क्षय हो जाने पर जीव के भाव बिल्कुल निर्मल व