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३-कर्म सिद्धान्त २०७ २-उदय उपशम आदि
जाये, वहाँ से दूसरे स्पर्धक का प्रारम्भ समझना। इस ही प्रकार जिन-जिन वर्गणाओं के वर्गों में प्रथम वर्गणा के वर्गों के अविभाग प्रतिच्छेदों की संख्या से तिगुने चौगुने आदि अविभाग प्रतिच्छेद होय, वहां से तीसरे चौथे आदि स्पर्द्धकों का प्रारम्भ समझना । इस प्रकार एक गुणहानि में अनेक स्पर्द्धक होते हैं।