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३-कर्म सिद्धान्त
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२-उदय उपशम आदि
(३२) इस प्रकरण में चय निकालने की क्या रीति है ?
निषेकहार में एक अधिक गुणहानि आयाम का प्रमाण जोड़कर आधा करने से जो लब्ध आवे, उसको गुणहानि आयाम से गुणा करें । इस प्रकार करने से जो गुणनफल हो उसका भाग विवक्षित गुण हानि के द्रव्य में देने से विवक्षित गुणहानि के चय का परिमाण निकलता है ( विवक्षित गुण हानि का द्रव्य
(निषेकहार + गुण हानि आयाम+१) गुणहानि-आयाम । जैसे (ऊपर के दृष्टान्त में) निषेकहार १६ में एक अधिक गुणहानि आयाम ६ जोड़ने से २५ हुए। २५ के आधे १२ को गुणहानि आयाम ८ से गुणाकार करने से १०० होते हैं । इस १०० का भाग विवक्षित प्रथम गुणहानि के द्रव्य ३२०० में देने से प्रथम गुणहानि सम्बन्धी चय ३२ आया । इस ही प्रकार द्वितीय गुणहानि के चय का परिमाण १६, तृतीय का ८, चतुर्थ का
४, पंचम का २ और अन्तिम का १ जानना । (३३) अनुभाग की रचना का क्रम क्या है ?
द्रव्य की अपेक्षा से जो रचना ऊपर बताई गई है उसमें प्रत्येक गुणहानि के प्रथमादि समय सम्बन्धी द्रव्य को वर्गणा कहते हैं। और उन वर्गणाओं में जो परमाणु हैं, उनको वर्ग कहते हैं। प्रथम गुणहानि की प्रथम वर्गणा में ५१२ वर्ग हैं, उनमें अनुभाग शक्ति के अविभाग प्रतिच्छेद समान हैं, और वे द्वितीयादि वर्गणाओं के वर्गों के अविभाग प्रतिच्छेदों की अपेक्षा सबसे न्यून अर्थात जघन्य हैं। द्वितीयादि वर्गणा के वर्गों में एक-एक अविभाग प्रतिच्छेद की अधिकता के क्रम से जिस वर्गणा पर्यन्त एक-एक अविभाग प्रतिच्छेद बढ़े, वहां तक की वर्गणाओं के समूह का नाम एक स्पर्द्धक है। और जिस वर्गणा के वर्गों में युगपत् अनेक अविभाग प्रतिच्छेदों की वृद्धि होकर प्रथम वर्गणा के वर्गों के अविभाग प्रतिच्छेदों की संख्या से दूनी हो