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३-कर्म सिद्धान्त
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৭-গ্রাধিকা १६८. अवधि व मनः पर्यय ज्ञानावरणी को देशघाती कैसे कहा जब
कि उसका हममें सर्वघात पाया जाता है ? कुछ प्रकृतियें ऐसी हैं जिनमें सर्वघात व देशघात दोनों प्रकार का कार्य करने की शक्ति है; जैसे अवधि व मनःपर्यय ज्ञानावरणीय, चक्षु व अवधि दर्शन । कारण इन प्रकृतियों का किन्हीं जीवों में सर्वघाती शक्ति युक्त उदय पाया जाता है और किन्हीं में देशघाती शक्ति युक्त । हममें चक्षु दर्शनावरण का देशघाती उदय है और बान्दिय जीवों में सर्व धाती। मति श्रुत ज्ञानावरण का किसी भी जीव में सर्वघाती उदय नहीं देखा जाता, इस
लिये ये तथा अन्य प्रकृतियें सर्वथा देशघाती ही हैं। (१६६) क्षेत्र विपाको प्रकृति कितनी और कौन सी हैं ?
चार हैं-नरकगत्यानुपूर्वी, तिर्यञ्च गत्यानुपूर्वी, मनुष्य
गत्यानुपूर्वी व देव गत्यानुपूर्वी । (१७०) भव विपाकी प्रकृति कितनी और कौन सी हैं !
चार हैं-नरकायु, तिर्यञ्चायु, मनुष्यायु, देवायु । (१७१) जीव विपाकी प्रकृति कितनी और कौन सी हैं ?
अठहतर हैं-घातिया की ४७, गोत्र की २, वेदनीयकी २, नाम कर्म की २७ (तीर्थकर, उच्छवास, नादर, सूक्ष्म, पर्याप्ति, अपर्याप्ति, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, अनादेय, यशः कीर्ति, अयशः कीति, बस, स्थावर, प्रशस्त विहायोगति, अप्रशस्त विहायो
गति, सुभग, दुर्भग, गति ४, जाति ५ । ये कुल मिलकर ७८ हैं। १७२. नाम कर्म की प्रकृतियों का फल जीव को कैसे हो?
यद्यपि सभी अघातिया कर्मों का फल शरीर प्रधान है, पर उपरोक्त कुछ प्रकृतियें ऐसी हैं जिनका औपचारिक फल जीव को प्राप्त होता है, जैसे नीच ऊंच गोल से जीव ही कुछ ऊंचा या नीचा अनुभव करता है, पर्याप्ति रूप शक्ति जीव में ही पैदा होती है, प्रशस्त या अप्रशस्त गमन अथवा यश व अपयश में जीव ही उत्साह आदि प्राप्त करता है।