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२-न्य गुण पर्याय
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५-पर्यायाधिकार द्रव्य तो उनके कारण रूप से मात्र ज्ञेय हैं। ८७. द्रव्य व गुण का अनुभव क्यों नहीं होता?
क्योंकि वे सामान्य है । अनुभव विशेष का होता है सामान्य का
नहीं; जैसे आम ही खाया जाता है, मात्र वनस्पति नहीं। ८८. द्रव्य गुण का अनुभव नहीं होता तो वे हैं ही नहीं।
नहीं, पर्यायों पर से उनका अनुमान होता है, क्योंकि सामान्य के विशेष कुछ नहीं होता; जैसे वनस्पति के अभाव में आम
कल्पना मात्र बनकर रह जायेगा। ८९. व्यञ्जन व अर्थ पर्याय में कौन पहले शुद्ध होती है ?
जीव की अर्हत अवस्था में पहिले अर्थ पर्याय शुद्ध होती है, पीछे सिद्ध होने पर व्यञ्जन पर्याय शुद्ध होती है। पुद्गल में परमाणु के पृथक हो जाने पर उसकी दोनों पर्याय युगपत
हो जाती हैं। ६०. जीव में विभाव पर्याय कहां तक रहती है ?
चौदहवें गुणस्थान के अन्त तक, अर्थात मुक्त होने से पहिले
तक। ६१. व्यन्जन पर्याय असमान होने पर भी अर्थ पर्याय समान हों
ऐसे द्रव्य कौन से?
मुक्त जीव; क्योंकि उनके आकार भिन्न हैं पर भाव समान। ६२. ५०० हाथ अवगाहना वाले सिद्धों में ज्ञान व आनन्द अधिक
तथा ७ हाथ अवगाहना वालों में कम है ? नहीं, अवगाहना व्यञ्जन पर्याय है और ज्ञान व आनन्द अर्थ पर्याय । अवगाहना छोटी बड़ी होने से अर्थ पर्याय छोटी बड़ी
नहीं होती, क्योंकि वे भावात्मक हैं। ६३. विभाव अर्थ पर्याय कितने प्रकार की होती हैं ?
दो प्रकार की-गुण की शक्ति घट जाना तथा गुण विकृत हो जाना।