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२-व्रव्य गुण पर्याय
५-पर्यायाधिकार है, क्योंकि वह कभी शुद्ध नहीं होता। स्थूल रूप से अकृत्रिम चैत्यालय, सूर्य बिम्ब आदि पुद्गल स्कन्धों की अनादि अनन्त विभाव व्यञ्जन पर्याय मानी गई हैं। वहां भी अर्थ पर्याय सादि सान्त ही होती हैं अनादि अनन्त नहीं ।
(५ अभ्यास) ६१. पर्याय किसका अंश है ?
द्रव्य व गुण दोनों का अंश है। द्रव्य का अंश होने से वह सह
भावी कहलाती है और गुण का अंश होने से क्रमभावी। ६२. किन किन द्रव्यों में कौन कौन पर्याय होती है ?
जीव व पुद्गल में वैभाविकी शक्ति होने से स्वभाव व विभाव दोनों प्रकार की अर्थ व व्यञ्जन पर्यायें होती हैं। शेष चार द्रव्यों में उस शक्ति का अभाव होने से केवल स्वभाव व्यञ्जन
व अर्थपर्याय ही होती हैं, विभाव नहीं। ६३. द्रव्य में कौन सी पर्याय एक होती है और कौन सी अनेक ?
व्यञ्जन पर्याय एक होती है और अर्थ पर्याय अनेक । क्योंकि
उनके कारणभूत प्रदेशात्वगुण एक है और अन्य गुण अनेक । ६४. एक समय में जीव कितनी पर्याय धारण कर सकता है ?
व्यञ्जन पर्याय तो स्वभाव या विभाव में से कोई एक हो सकती है, क्योंकि वह एक ही गुण की होती है, और अर्थ पर्याय एक ही समय में स्वभाव व विभाव दोनों हो सकती हैं, क्योंकि वे अनेक हैं। कुछ गुणों की स्वभाव अर्थ पर्याय हो सकती है और कुछ की विभाव । जैसे-चौथे गुण स्थान में सम्यक्त्व गुण की स्वभाव पर्याय है और शेष गुणों की
विभाव। ६५. एक समय में पुद्गल कितनी पर्याय धारण कर सकता है ?
केवल दो-दोनों ही प्रकार की स्वभाव पर्याय या दोनों ही विभाव पर्याय। क्योंकि स्कन्ध सर्वथा अशुद्ध द्रव्य होने के