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२-द्रव्य गुण पर्याय
१४२ ४-जीव गुणाधिकार प्रगट होने की योग्यता न हो उसे अभब्यत्व गुण कहते हैं। २१६. क्या अभव्य जीव मुक्त हो सकता है ?
नहीं, क्योंकि उसको सम्यग्दर्श प्रकट होने की योग्यता नहीं है। २२०. क्या भव्य जीव अवश्य मुक्त होता है ?
सभी भव्य जीवों को मुक्त होना अयश्यम्भावी नहीं है । हां
जो कोई भी मुक्त होता है. वह भव्य ही होता हैं। २२१. भव्य कितने प्रकार के हैं ?
वैसे तो एक ही प्रकार का है, पर मुक्ति की निकटता व दूरता की अपेक्षा कई प्रकार के हैं; जैसे आसन्न भव्य, दूर भव्य,
दूरातिदूर भव्य, अभव्य समभव्य इत्यादि। २२२. भव्य के उपरोक्त भेदो के लक्षण करो?
निकट काल में भक्ति की योग्यता रखने वाले सम्यग्दृष्टि आसन्न भव्य हैं। कुछ काल पश्चात मुक्त होने वाले धर्म के श्रद्धालु दूर भव्य है। अति दूर काल में काललब्धि वश कदाचित मुक्त होने वाले दूरातिदूर भव्य हैं । और कभी भी सम्याक्त्व सम्पादन के प्रति उद्धत न होंगे ऐसे अभव्य सम
भव्य हैं । २२३. दूरातिदूर भव्य और अभव्य में क्या अन्तर है ?
यह अन्तर केवल ज्ञान गम्य है, छद्मस्थ गोचर नहीं । २२४. यदि कदाचित हम अभव्य हो तो मोक्ष का पुरुषार्थ किस लिये
करें? पुरुषार्थी कभी अपने को अभव्य नहीं समझता; जैसे कि व्यापारी टोटे की शंका नहीं करता। प्रमादी के हृदय में ही ऐसी शंका होती है।
(१४ जीवत्व व प्राण) (२२५) जीवत्व गुण किसको कहते हैं ?
जिस शक्ति के निमित्त से आत्मा प्राण धारण करे उसको जीवत्व गुण कहते हैं।