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________________ २-द्रव्य गुण पर्याय ३-गुणाधिकार सुरक्षित है। वह न हो तो बड़े द्रव्य छोटे को निगल जायें। ७१. द्रव्य की स्वतंत्रता का क्या अर्थ ? द्रव्य अपने स्वरूप में स्थित रहे, अन्य रूप न बने । ७२. द्रव्य स्वतंत्र रूप से शुद्ध अशुद्ध सब प्रकार के कार्य कर सकता है, ऐसा कहें तो? नहीं, वस्तु स्वतंत्रता का यह अर्थ नहीं है कि वह जो चाहे कर सके। कोई भी द्रव्य अपने कार्यक्षेत्र की सीमा को उल्लंघन नहीं कर सकता । यही उसकी स्वतन्त्रता है, क्योंकि अन्य का कार्य करने का अर्थ है उसे अपने आधीन करना । प्रत्येक द्रव्य अपने योग्य ही प्रयोजनमत कार्य कर सकता है, दूसरे के योग्य नहीं, क्योंकि ऐसा होने लगे उसकी शक्ति में बदल कर दूसरे रूप हो जायें जो असम्भव है । अगुरुलघुत्व के द्वितीय लक्षण से यह बात जानी जाती है। ७३. मुक्त आत्मायें तेज में तेजवत् मिलकर एक हो जाती हैं ? नहीं, वे एक दूसरे के क्षेत्र में अवगाह भले पा लें पर उनकी अपनी अपनी सत्ता विनष्ट नहीं होती; जैसे कि दूध में जल व खाण्ड की सत्ता । अगुरुलघुत्व के प्रथम लक्षण से यह बात जानी जाती है। ७४. गुरु ने मुझे ज्ञान दिया ? गुरुने अपना ज्ञान मुझे नहीं दिया, मेरा ही ज्ञान गुण उनके निमित्त से मुझमें विकसित हुआ है । गुरु अपना ज्ञान देते वे लघु हो जाते और उनका ज्ञान मुझमें आने से मैं गुरु हो जाता। गुरु का ज्ञान उनसे पृथक नहीं हो सकता। अगुरुलघुत्व के तृतीय लक्षण से यह बात जानी जाती है । ७५. सम्यग्दृष्टि को चारित्रवान होना ही चाहिये ? नहीं, सम्यग्दर्शन व चारित्र दोनों गुण पृथक २ हैं, इनका कार्य भी स्वतंत्र है । यदि सम्यक्त्व गुण चारित्र गुण को बाध्य करने लगे तो चारित्र गुण सम्यक्त्व बन जाये । अगुरुल घुत्व गुण के
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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