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२-द्रव्य गुण पर्याय
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३-गुणाधिकार छः मूल पदार्थ त्रिकाल स्थायी हैं। संसार नाम से जो प्रतीति में आ रहा है वह उसी त्रिकाली सत् का परिणमन मात्र है। द्रव्यत्व गुण की तरफ देखें तो पर्याय रूप होने से संसार का
स्वभाव ही ऐसा है, यही उसका सौन्दर्य है और यही सार । ४८. जगत की उत्पत्ति स्थिति संहार करने वाला कौन है ?
जगत नाम द्रव्य का नहीं पर्याय का है। नवीन पर्याय का उत्पाद और पुरानों का व्यय होते रहना ही उसका स्वभाव है। अतः जगत की उत्पत्ति व संहार करना द्रव्यत्व गुण का कार्य है। मूल छः द्रव्य रूप से वह त्रिकाल ध्रुव है । अस्तित्व गुण ही
उनकी स्थिति की रक्षा करता है । ४६. 'ब्रह्म सत् जगत् मिथ्या' क्या भूल है ?
अस्तित्व व द्रव्यत्व गुण की भ न है। अस्तित्व गुण के कारण कुछ भी मिथ्या नहीं, क्योंकि उसे देखने पर जगत नहीं मूल छः पदार्थ दिखाई देते हैं, जो त्रिकाल सत् हैं, उनकी समष्टि हो 'ब्रह्म' शब्द वाच्य जाननी चाहिये । द्रव्यत्व गुण की तरफ देखने पर उसकी पर्यायभत इस जगत का स्वभाव ही अस्थिर
है, फिर उसमें मिथ्यापना क्या । ५०. लोक में कोई भी वस्तु टिकती प्रतीत क्यों नहीं होती ?
क्योंकि द्रव्यत्व गुण के कारण प्रत्येक पदार्थ नित्य परिणमन
कर रहा है। ५१. अकृत्रिम चैत्यालय व सूर्य विम्ब आदि त्रिकाल नित्य कहे जाते
स्थूल रूप से नित्य दीखने से ऐसा कहा जाता है । वास्तव में द्रव्यत्व गुण के कारण उनके भीतर भी बराबर सूक्ष्म परिणमन
हो रहा है। ५२. संगमरमर के इस स्तम्भ में कोई परिवर्तन नहीं है ?
ऐसा वास्तव में नहीं है । इसमें भी बरावर सूक्ष्म परिवर्तन हो रहा है, अन्यथा सहस्र वर्ष पश्चात् यह जर्जरित होकर समाप्त न