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________________ २-न्य गुण पर्याय २-व्याधिकार १९३. १६२. क्या पुद्गल परमाणु एक समय में एक ही प्रवेश पार कर सकता है या अधिक भी? सबसे अधिक मन्दगति से गमन करे तो एक प्रदेश पार करता है, परन्तु तीव्रतम गति से तो वह एक समय में सारे लोक का उल्लंघन करने को समर्थ है। एक समय में १४ राजू जाने वाले परमाणु के द्वारा एक समय के असंख्यात भाग हो जायेंगे? नहीं, क्योंकि एक समय से कम की कोई भी गति या कार्य सम्भव नहीं, वह गति तीव्र हो या मन्द । तहां मन्द गति से एक प्रदेश और तीव्र गति से लोक का उल्लंघन करता है, तहां कोई विरोध नहीं अथवा प्रदेश का उल्लंघन करना समय की उत्पत्ति का कारण नहीं, वह तो केवल अनुमान कराने का एक साधन है। १६४. काल द्रव्य को खण्ड रूप क्यों माना गया? काल द्रव्य के निमित्त से होने वाला परिणमन एक समय से अधिक का नहीं होता, इसलिये उसे खण्डरूप माना गया, क्योंकि कार्य के अनुसार ही कारण होना चाहिये। १९५. काल द्रव्य को धर्म द्रव्यवत् व्यापक क्यों न माना गया? धर्म द्रव्य के निमित्त से होने वाली गति तो तीव्र व मन्द अनेक प्रकार की हो सकती है, पर काल द्रव्य के निमित्त से होने वाला परिणमन नियम से एक एक समय का पृथक पृथक ही होता है। धर्म द्रव्य के निमित्त से होने वाला कार्य व्यापक भी हो सकता है और अव्यापक भी, इसलिये उसे व्यापक मानना ही न्याय संगत है। काल के निमित्त से होने वाला कार्य सर्वदा खण्डित ही होता है इसलिये उसे खण्डित ही माना गया है। दूसरे प्रकार से यों समझिये कि धर्म द्रव्य क्षेत्र-प्रधान है और काल द्रव्य काल-प्रधान । द्रव्यों का क्षेत्र या अखण्ड आकार बड़ा छोटा सब प्रकार का हो सकता है, परन्तु काल का अखण्ड रूप एक समय से अधिक नहीं होता, इसीलिये वह व्यापक है और यह अणु रूप।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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