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जैन सिद्धीतसंग्रह ।
कुंथ कुंथुमुखनीवपाल नरनाथ मार्क हर । मल्लि मल्लर्समं मोहमल मारेण प्रचार घरं ॥ सुनिसुव्रत व्रतकरण नमत सुरसंघार्हि नाम मिनं । नेमिनाथ नेमि घर्मरंथ मांहिं ज्ञानं धनं ॥ १९ ॥ पार्श्वनाथ जिन पार्श्व पळसम मोक्षरमापति । वर्द्धमान भिन' नमू बमूं भवदुःख कर्मकृत ॥ याविष में जिनसंघरूप चंडवीस संख्यघर । स्तऊं नमूं हूं बार बार बंद शिवसुखंकर ॥ २० ॥
अथ पंचम वेदना कर्म ।
वंदूं में जिनवीर धीर महावीर सु सन्मति । वर्द्धमान अंतिवीर बंदिनों मनवचतनकृत ॥ त्रिशलातनुज महेश घीश विद्यापति बदूं | बंदूं नितप्रति कनकरूपतनु पाप निकंदूं ॥ २१ ॥ सिद्धारथ नृपनन्द द्वंद दुखदोष मिटावन । दुरित दवानल ज्वलित ज्वाल नगजीव उधारन ॥ कुंडलपुर करि जन्म जगतनिय आनन्दकारन | वर्ष बहतरि आयु पाय सब ही दुख टारन २२ सप्तहंस्ततनुतुंग मंग कृत जन्म मरण भय । बालब्रह्ममय ज्ञेयः हेय आदेयं ज्ञानमयं ॥ दे उपदेश उधारि तारिं भवसिंधु जीवंघन । आप वसे शिवमाहिं ताहि वंदो मनवचतन ॥ ११ ॥ जाके बंदनथकी दोष दुख दूरहि नावै । जाके वंदनथकी मुक्ति तियं सम्मुख आवैं ॥ जाके वंदनथकी वंद्य होवें सुरगनके । ऐसे. वीर निनेश बंदिहू क्रमयुग तिनके ॥ २४ ॥ सामायिकं षटकर्म - माहिं बंदन यह पंचम । वदे वीरंजिनन्द्र इंद्रशववंद्य वंद्य मम ॥ जन्म मरण भय हरो कॅरो अघ शांति शांतिमयं । मैं अधकांश सुपोष दोषको दोष- विनाशय ॥ २६ ॥
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