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जैनसिद्धांतसंग्रह। प्रयन नाक विन धान ज्योतिष, वान भवन सब नारी 1 यार विकलत्रय पान नहि, उपनत सन्यक्रधारी। तीनलोक तिहुंचाल मांहि नहि, दर्शन सो मुखकारी ।। सकल घरनको मूल यही इस, बिनकरणी दुखकारी ||१६ नोक्षनहल्की परयन नाही, या विन ज्ञान चरित्रा। सन्यता न लह, बो दर्शन, धारो भव्य पवित्रा । दाल समझ सुन चेत सयाने, काल च्या मत लौर। . यह नरमव रि मिलन ऋठिन है, जो सन्यक नहिं हो ।
चतुर्य दाल। दोहा-सन्या श्रद्धा धारि पुनि, सेवहु सन्यज्ञान ! स्वपर अर्थ बहु धर्मयुत, वा प्रगयवन मान ।।
रोलाउन्न २४ मात्रा। सन्यक साये ज्ञान, होप 4 मिन्न मरायो। . लक्षण अता नान, दुम मेड बायो॥ सन्या कारण जान, ज्ञान कारज है सोई। युगपत होते . प्रश्नाव दीपा ते होई ॥ १ ॥ गस नेद दो है, परोक्ष परतत विन माहीं । मति श्रुत दोय परोक्ष, मन मनते. उपनाही ॥ अविज्ञान ननर्यय, ये हैं देशप्रत्यक्षा। द्रव्यक्षेत्र परिमाण, लिये जाने बिय स्वच्हा ॥ २ ॥ सन इन्यक्के गुण, अनंत पर्याय जनगा। . भान एकै चार, प्रगट केवलि भगवन्ना । ज्ञान जान न आन, नगर्ने मन्त्रको कारण !