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जैनसिद्धांतसंग्रह। इहि परमामृतं जन्म, जरामृत रोग निवारण ॥ ॥ कोटि जन्म तप तपै, ज्ञानविन कर्म झरे में। ज्ञानीकै छिनमें त्रिगुप्तिते सहन ते मुनिव्रत धार" अनंतबार ग्रीवक उपनायो । पै निन आतम-ज्ञान-विना सुख लेश न पायो ४ ॥ 'तात निनवर कथित, तत्र अभ्यास करीजै ।। संशय विभ्रम मोह, त्यांग आपो लेख लीजै । यह मानुप पर्याय, संकुल सुनवा जिन बानी।" इह विधि गये न मिले, सुमनि ज्यों उदधि समानी ॥१॥ धन समाज गंज बान, रा. तो कांज न आवै ।" ज्ञान आपको रूप भये, फिर अचल रहावे ॥ 'तास ज्ञानको कारण, स्वपर विवेक बखानो। कोटि उपाय बनायं भव्य ताको 'उर आनो ॥ ६॥ ने पूरब शिव गए, जाहिं अब आगे हैं। सो सब महिमा ज्ञान-तणी मुनिनाथ कहे हैं।" विषय चाह-दवदाह, जगत जन अरन दझावै ।' तास उपाय न आन, ज्ञानधन-धान वुझावै ॥७॥ पुण्य पाप फलं माहि, हरष"विलखो मत भाई। यह पुद्गलं पर्याय, उपनि विनशै फिर थाई ॥' लाख बांतकी बाने, यही निश्चय उर लायो । बोरि सकल जगदंद-फंद नित आतम ध्यावो ॥ ८ ॥ सम्यग्ज्ञांनी होय, बहुरि 'दृढ़ चारित लाजै। एकदेश अरु सकलंदेश, तेसु भेद कहीने ॥