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जैनसिद्धांतसंग्रह।
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ने क्रिया तिन्हें जानहु कुधर्म | सिन सर] जीव लहे अशर्म । याकू गृहीत मिथ्यात् भान | अब सुन ग्रहीत जो है अजान ॥१२ एकांत बाद-दूषित समस्त । विषयादिक पोशक अप्रशस्त ॥.. कपिलादिरचित श्रुतका अभ्यास । सौह कुबोध बहु देन त्राप्त १३. जो ख्याति लाभ.पूजादि चाह । धर करन विविध विदेहदाह । आतम अनात्मके ज्ञान हीन । जे जे करनी तन करन छीन र ते सब मिथ्या चारित्र त्याग । अब आतमके हित-पंथ लाग । नगाल भ्रमणको देय त्याग । अबदौलत निजआतमसु पाग ।।१५
तृतीय ढाल । नरेन्द्रछन्द २८ मात्रा। आतंमको हित है सुख सो सुख, आकुलता बिन कहिये । आकुलता शिवमांहि न ताते, शिवमग लाग्यो चहिये । । सम्यकदर्शन ज्ञान चरन शिव-मग सो दुविधि विचारो ॥. जो सत्यारथरूप सो निश्चय, कारण सो व्यवहारो॥१॥ परद्रव्यन” भिन्न आप मैं, रुचि सम्यक्त भला है । आप रूपको जानपनो सो, सम्यकज्ञान कला है ।। आपरूपमें लीन रहे थिर, सम्यकचारित सोई। अब बिवहार मोख-मग मुनिये, हेतु नियतको होई ॥२॥
जीव अजीव ,तत्व अरु आश्रव, बंधरु संवर नानो । • निर्जर मोक्ष कहे जिन तिनको, ज्योंको त्यों सरधानो ।।
है सोई समाकत विवहारी, अब इनरूप वखानो। तिनको सुन सामान्य विशेषे, दिढ़ प्रतीति उर आनो ॥३॥ बहिरातम अन्तर आतम पर-मातम जीव त्रिधा है। देह जीवको एक गिने बहि,-रातम तत्वः मुधा है ।। .