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जैनसिद्धांतसंग्रह
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ईशान 1. तहां मेदगिरि नामः प्रधान | साढ़े तीन कोडि : मुनिराय ॥ तिनके चरन नमूं चित्त 'लाये ॥१७॥ वंशस्थल बनके ढिंग होय ॥ पश्चिमदिशा कुंथगिरि सोय ॥ कुलभूषण देशभूषण नाम । तिनक
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चरणानि करूं प्रणाम ||it|| जसरथराजाके सुतः कहे । देशकलिंग पांचसौ हे ॥ कोटिशिला मुनि कोटिसमान । वंदन करूं जोर जुगप्रान ॥ १९॥ समवसरण श्री पार्श्वनिनंद । रेसंदीगिरि नयनीनंद्रगी वरदचादि पंच ऋषिराज । ते बंदों नित धरमनिहींज ॥१०॥ तीन लोकके तीरथ जहाँ नितप्रति वंदन कीजे तहाँ मन वच कीयसहित सिरनाय । वंदन करहिं भविक गुणंगाय ॥॥२१॥ संवत - सतरहसौ इकताल | अश्विनसुदि दशमी-सुविशाल || 'मैया" वंदन करहिं त्रिकाल | जय निर्वाणकांड गुणमाल ॥ २२॥ . इति निर्वाणकांड 'भाषा ।'
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श्रीनिर्वाणकांडका भावार्थ |
श्री आदिनाथ भगवान्, कैलाश पर्वतपरसे मोक्षको पधारे हैं। श्री वासुपूज्य स्वामी, चंपांपुरते मोक्षं गये हैं श्री नेमिनाथ स्वामी गिरिनार पर्वत से मोक्षं गये हैं। श्री महावीर स्वामी पावापुर से मोक्ष गये हैं । इन चार तीर्थकरों के सिवाय शेष वर्तमान वीस तीर्थंकर श्री सम्मेदशिखरभी से मोक्ष को पंधाएँ हैं ।। १,२ ॥
श्रीतारंगाजी से वरदत्त, वरंगदत्त और सागरंदत आदि सांढ़े तीन करोड़ मुनि मोक्ष गये हैं ॥ ३ ॥ श्री गिरिनार पर्वत से (श्री नेमिनाथ स्वामी के सिवाय ) शंबुकुमार, प्रदुम्न कुमार