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जनासदांतमंग्रह। [५६ । तप संभमबल प्रभुको, मनपर्नय भयोः। ..
मौनसहित. तप करत, काल कछु तहँ गयो । गयो कछु तहँ काल तपबल, रिद्धि वसुविधि सिडिया । जसु धर्मध्यानवलेन खयगये, सप्तः प्रकृति प्रसिद्धिया.॥ . खिपि सातवें मुण-जतन विन-तहँ, तीन प्रकृति जु बुधि चढ़े। करि करण तीन प्रथम शुकलबल, खिपक श्रेणी प्रभु चढ़े ॥१४॥
. प्रकृति छतीस नवें गुण,- थान विनासिया। । दशमें सूच्छमलोम -प्रकृति तहं नासिया। शुकल ध्यान पद, दूजो, फुनि प्रभु: पूरियो ।
बारहमें-गुण सोलह, प्रकृति जु चूरियो । चूरियो. त्रेसाठ प्रकृति इहविधि, घातिया कर्महंतणी । तप कियो ध्यानप्रयत बारह, विधि त्रिलोकशिरोमणी॥ निःक्रमणकल्याणक मुमहिमा, सुनत सब सुख पावहीं । नन 'रूपचंद्र' सुदेव जिनवर, जगत मंगल गावहीं ॥११॥
'श्रीज्ञान कल्याणक । तेहरमें गुण-थान, सयोगि जिनेसुरो : अनंतचतुष्टयमंडित, भयो परमेसुरो॥ समवसरन तब धनपति, बहुविधि निरमयो।
आगम युक्ति प्रमाण, गगनतल परिठयो ।. परिठयो चित्र विचित्र मणिमय, सभामंडप सोहये । तिहिं मध्य बारह बने कोठे, वनक सुरनर मोहये ॥ मुनि कल्पवासिनि अरनिका फुनि, ज्योति भौम-भवन-तिया :