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जनसिद्धांतसंग्रह |
श्री सिद्धगुण पूजा । अड़िल - दर्शन ज्ञानानन्त, अनन्ता बक कहो । सुख अनन्त विलसंत, सु सम्यकू गुण- कहो ॥ अवगाहन सु अगुरुघु अव्यावाघ है । इन वसु गुण युत सिद्ध, नजों यह साध है ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं अष्टगुणविशिष्टाय सिद्धपरमेष्ठि ऽर्घ नि० ॥ श्रीआचार्य पूजा ।
दोहा - आचारन आचारयुत, निज पर मेद लखन्त । तिनके गुण षट्तीस हैं, सो जानो इमि सन्त ॥ १ ॥ बेसरी छंद ।
उत्तम क्षमा धरे मन माहीं । मारदव घरम मान निहिं नाहीं ॥ आरजव सरल स्वभाव तु नानो। झूठ न कहें सत्य परमानो । निर्मक चित्त शौच गुण घारी। संम गुण घारै सुखकारी ॥ द्वादश विधि तप तपत महंता । त्याग करें मन वच तन संता ॥ तन ममत्व आकिंचन पालें 1 ब्रह्मचर्य घर कर्मन टालें ॥ ये दश धरम घरें गुण भारी । माचारज पुत्रों सुखकारी ॥ ४ ॥ ॐ ह्रीं दशलाक्षणिकघर्मधारकाचार्य परमेष्ठिने. अर्ध नि० ॥ बेसरी छंद । .
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अब द्वादश तप सुनिये भाई, अनशन ऊनोदर सुखदाई ॥ व्रतपरिसंख्पा रस नहिं चाहें। विविक्तभैध्यापन अवगाहें ॥ १ ॥ कायक्लेश सहें दुख भारी, ये छह तप बारह गुण धारी ॥प्रायश्चित्त लेवें गुरु शाखें । विनयभाव निशिदिन चित राखें ॥६॥
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