________________
३१६] जैनसिद्धांतसंग्रह। पीड़ीमें स्नान मात्रसे शुद्धता कही है। ८. जन्म तथा मृत्युका सूतक कुटुम्बी मनुष्योंको मो न्यारे रहते हैं । दिनका होता हैं। १.. माठ वर्ष तक के बालकको मृत्युका ३ दिनका और तीन दिनके बालकका सूतक १ दिनका भानो । ११. अपने कुमका कोई गृह त्यागी हो, उसका सन्यासमरण अथवा किसी कुटुंबीका संग्राममें मरण हो नाय, तो १ दिनका सुतक होता है। यदि अपने कुलका देशांतर, मरण करे और १२ दिन पूरे होने के पहले मालम हो तो शेष दिनोंका सुतक मानना चाहिये । यदि दिन पूरे हो गये होवें, तो नग्न मात्र सुतक नानो। १९. घड़ी, भैंस, गौ आदि पशु तथा दासी अपने गृहमें मने अथवा मांगनमें मने तो १ दिनका सूनक होता है। गृह बाहर भने तो सूतक नहीं होता । १३. दासी दास तथा पुत्रीके अपने घरमै प्रसूति होय या मरे, नो । दिनका सुतक होता है। यदि गृह बाहर हो तो सूतक नहीं । यहाँपर मृत्युकी मुख्यतासे ३ दिनका कहा है। प्रसूताका १ ही दिनका नानो। ११. अपनेको मग्निमें मलाकर (सती हो कर ) मरे तितका छह माहका तथा और २ इत्याभोंका यथायोग्य पाप मानना । ११. जने पीछे भैसका दूध १५ दिन तक, गायका दुध १० दिन तक और वक रीका दूध आठ दिन तक अशुद्ध है। पश्चात खानेयोग्य है। प्रगट रहे कि कहीं देशभेदसे सूतकविधानमें भी भेद होता है इसलिये देशपद्धति तथा शाखपद्धतिका मिलानकर पालन करना चाहिये । (श्रावकधर्मसंग्रहसे उडत)।