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जैनसिद्धांतसंग्रह। मच्छरीरेऽस्मिन् जिनेन्द्र तव दर्शनात ॥२॥ माह सुरुती भूतो निर्धूतशेषकरमषः भुवनत्रयपूज्योइं मिनेन्द्र तव दर्शनात् ॥१०॥ अद्याष्टकं पठेद्यस्तु गुणानन्दितमानसः । तस्य सर्वार्थससिद्धिर्मिनेन्द्र तव दर्शनात ॥ १॥
इति अद्याष्टक स्तोत्र संपूर्णम् ।। (१०) सूतक निर्णय। । सुतकमें देव शास्त्र गुरुका पूनन प्रक्षालादि तथा मंदिरजीके वस्त्राभूषणादिके स्पर्शनकी मना है तथा पात्रशन भी वनित है। सुतक पूर्ण होने के बाद प्रथम दिन पूजन पक्षाल तथा पात्रदान करके पवित्र होवे । सूनका विवरण इस प्रकार है। १ जन्मका सुतक दश दिनका, तथा २. स्त्रीका गर्म जितने महका पतन हुवा हो, उतने दिनका सुतक मानना चाहिये । विशेष यह है कि यदि तीन माहसे धमका हो तो तीन दिनका सुतक मानना चाहिये। ३. प्रसुती स्त्रीको ४५ दिनका सूतक होता है, उसके परिवारवालोंको नहीं, इसके पश्चात वह स्नान दर्शन करके पवित्र हो । कही २ चालीस दिनका भी माना जाता है । ४. प्रसूतिस्थान एक माह तक अशुद्ध है समस्त घर नहीं। ५. रजस्वला स्त्री पांचवें दिन शुद्ध होती है । ६. व्यभिचारिणी स्त्रीके सश ही सुतक रहता है, कभी भी शुद्ध नहीं होती ।। ७. मृत्युका सूतक १२ दिनका माना जाता है । तीन पीड़ी तक १२ दिन, चौथी पीड़ी ६ दिन, छठी पीड़ीमें दिन, सातवी पीड़ीमें दिन, आठवों पीड़ में एक दिन रात, नवी पीड़ीमें दो पहर, और दशौं