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जैनसिद्धांतसंग्रह। परम सुखदायि । विषक मिनेश जहां शिव नाई ॥ मनवच दर्श करै नो कोई, कोई उपास वनौ फल होई ॥ १४ ॥ कूट स्वयंभू सुभगसु ठाम । गये अनंत अमरपुर धाम | यही कूट को दर्शन करै । कोड उपास तनौ फ घरै ॥ १५ ॥ है मुदत्तवर कूट महान । नहते धर्मनाथ निर्वाण | परम विशाल कूट है सोई, कोड उपवास दर्श फळ होई ॥ १६ ॥ कूट प्रमाप्त परम शुम. कहौ । शांति प्रभु जहते शिव लहो | कूट तनौ दर्शन है सोई। एक क्रेड प्रोषध फल होई ॥ १७ ॥ परम ज्ञानघर है शुभ कूट। शिवपुर कुंथु गये अघ छूट ॥ इनको पून दोई केर जोर । फल उपवास कहो इक कोड़ ॥ १८ नाटक कूट महां शुम जान । म्हते परह मोक्ष भगवान ॥ दर्शन कर कूटको नोई । क्ष्यानवै कोड़ उपास फल होई ॥ १९॥ संवलकूट मल्लि मिनराय । जहते मोक्ष गये निम काय || कूट दरश फल कही जिनेश । कोड़ि एक प्रोषध फर वेस ॥ २० ॥ निर्नर कूट महा सुखदाई । मुनिसुव्रत जह से शिव जाई ॥ कूट तनौ दर्शन है सोई । एक कोड़ प्रोषध 'फळ होई ॥ २१॥ कूट मित्रघर नमि मोक्ष । पूमत पाय सुरा
सुर जक्ष | कूट तनौ फक है सुखदाई । कोड़ उपास कहौ जिनराई ना२९॥ श्रीप्रभु पार्श्वनाथ जिनराय, दुरगति त छूटे महाराज || सुवर्णमद्र कूट को नाम । नहं ते मोक्ष गये जिन धाम ॥ ३३ ॥ तीन लोक हित करत अनुप | मंगल मय जगमैं चिद्रूपः॥ चिंता. मणि स्वर वृक्ष समान । रिद्ध सिद्ध मंगल मुख दान ॥ २४ ॥ पारस और काम सुर धेनु । नानाविष भानंदकौं देनु । व्याधि विकार नाहिं सब मान । मन चिंते पुरै सब काम ॥२५॥ भव.