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२९८] नासदांतसंग्रह। दोहा-सुवर्ण मद जु कूट, श्री प्रभु पारसनाथ । जही शिवपुरको गये, नमों नोड़ि जुग हाथ ॥ ॐ हो सुवर्णभद्र कूटते श्री पार्श्वनाथ स्वामी सिद्धपद प्राप्ताय सिद्धक्षेत्रभ्यो बघ निर्वपामीति स्वाहा ॥२१॥ या विधि वीस निद्र, वीसी शिखिर महान ॥ और असंख्य मुनि सहनही । पहुंचे शिवपुर थान | ॐ ह्रीं श्री वीस फूट सहित अनंन मुनि सिहपद प्राप्ताय सिद्धक्षेत्रेभ्यो मर्ष ॥२२॥ ढारकातिककी-प्राणी हो मादीश्वर महाराजमी, मष्टापद शिव थान हो । वास्पून जिनराननी चंपापुर शिवपद नान हो ॥ प्राणी नेम प्रभु गिरनारत, पावापुर श्री महावीर हो। प्राणी पनौ अर्घ चढ़ाय के, इह नाथै भयभीत हो । पाणी पुनौ मनवच क्रायके ॥ हो श्री ऋषभनाथ कैलाशगिर, श्री महा. वीरस्वामी पावापुर , श्री वासुपूम चम्पापुर , नेमिनाथ गिरनार ते सिद्धपद प्राप्ताय सिद्धक्षेत्रेभ्यो अर्घ ॥ २३ ॥ दोहा-सिद्धक्षेत्र ने और हैं, भरत क्षेत्रके मांहि ॥ और जु अतिशय क्षेत्र हैं, कहे जिनागम मांहि । तिनको नाम जु लेतही, पाप दूर हो नाय । ते सब पूनौ भघ ले, भव भववं मुखदाय । ॐ ह्रीं भरत क्षेत्र सम्बन्धी अतिशय क्षेत्रेभ्यो अर्घ । सोरठा-दीप मढ़ाई माहि सिद्धक्षेत्र जे और हैं । नौ अर्घ चढ़ाय भवभवके अघ नाश ह॥ ॐही मढाई द्वीप सम्बन्धी सिद्धक्षेत्रम्यो मर्च ॥ १४ ॥
अथ जयमाला चौपाई-मन मोहन तीरथ शुभ नानौ । पावन परम मु . क्षेत्र प्रमानौ । उनतीस शिखिर अनूपम सोहे । देखत ताहि मुरासुर मोहे । दोहा-तीरथ परम सुहावनौ, शिखिर सम्मेद