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जैनसिद्धांतसंग्रह। [२९७ कर जुग नोर || मष्ट कर्मको नाश कर, अविनाशी पद पाय । ते गुरु मम हृदये वसौ, भवदधि पार लगाय ॥ ॐ हीं नाटककूट श्री अरहनाथ जिनेन्द्रादि निन्वानवे कोड़ि निन्यानवै लाख निन्यानवै हमार मुनि सिद्धपद प्राप्ताय सिद्धक्षेत्रेभ्यो अर्घ ॥१७॥ अडिल्ल छन्द-कूट संवल परम पवित्र नू ॥ गये शिवपुर मरिक जिनेश जु ॥ मुनि जु क्ष्यानवै कोडि प्रमानिये, पद मनत हृदयें सुख मानिये ॥ ॐ ही संबल कूट- श्री मल्लिनाथ जिनेंद्रादि क्यानवे कोडाकोड़ी मुनि सिद्धपदमाप्ताय सिद्धक्षेत्रेभ्यो अर्घ ॥१८ ढार परमादीको चालमें-मुनिमुव्रत निनराम सदा आनंदके दाई । सुंदर निर्जर कूट जहां ते शिवपुर पाई ॥ निन्यानव कोड़ा कोड़ कहे मुनि कोड़ सत्याना। नो लख जोर सुनेन्द्र कहे नौसे निन्याना । सोरठा-कर्मनाश ऋषिरान, पंचमगतिके सुख लहे। तारन तरन जिहाज, मो दुख दूर करौ सकल ॥ ॐ हीं श्री निर्नर कूटते श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेंद्रादि निन्यानवे कोड़ाकोड़ी संतावन कोड़ नौ लाख नौ शतक निन्यानवे मुनि सिद्धपद प्राप्ताय अध ॥१९॥ ढारजोगरासा-एह मित्रधर कूट मनोहर सुंदर अतिछरछाई । श्री नमिनाथ जिनेश्वर जहां शिवपुर पहुँचे जाई॥ नौसे कोडाकोड़ी मुनीवर एक अरब ऋषि जानौ । बाख सैतालिस सात सहप्स अरु नौसे व्यालिस मानौ। दोहा-वसु कर्मनको नाशकर, अविनाशी पद पाय । पूनौ चरन सरोन ज्यों, मनवांछित फल पाय ॥ ॐ ह्री श्री मित्रधर कूटते श्री नमिनाथ जिनेंद्रादि मुनि नौसे कोडाकोड़ी एक अर्थ सेवालिस लाख सात हजार नौसे व्यालिस मुनि सिद्धपद प्राप्ताय सिद्धक्षेत्रेभ्यो अर्ष ॥२०॥
जोडाकोई
यालिस चाव सराजिनद्राक्ष