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२९६] जैनसिद्धांतसंग्रह। जिनेंद्रादि क्ष्यानवै कोड़ाके ही सत्तर लाख सात हजार सास मुनि सिद्धपद प्राप्ताय सिख क्षेत्रम्यो अर्घ ॥१॥चौपाई-कृट सुदत्त महां शुभ मानों । श्री जिनधर्म नायकों थानौं ॥ मुनि जु कोड़ाकोड़ उनतीस । और पहे ऋप कोड़ उनी ॥ न लाख नौ सहम सुजानों । सात शतक पंचानव मानों मोक्ष गये वसु कमन चुरे । दिवस रैन तुमही मम्परे ।। ॐ हाँ श्री सुदत्त कुटले श्री धर्मनाथ निन्द्रादि नतीस कोडाफोड़ी उनीस कोड नव्य लाख नौ हमर सानसे पंचानव मुनि सिद्धपद प्राप्ताय सिद्धक्षे
म्यो अर्घ निर्वामीति स्वाहा ॥१४॥ प्रभासी कूट मुंदर पति पवित्र सो नानिये। सातनाथ जिनेन्द्र जहांत परम धाम प्रमानिये। ॐ ह्रो प्रभास कूटतें श्री शांतिनाय निन्द्रादि नौ कोडाकोड़ी नौ लाख नौ इमार नौसे निन्यानवे मुनि सिद्धपद प्राप्ताय सिद्ध क्षेत्रम्यो अर्घ ॥१५॥ गीतका छन्द-ज्ञानघर शुम कुट सुंदर परम मनको मोहनो । जहते श्री मुकुंयु स्वामी गये शिवपुरको गनो ॥ फोड़ाकोड़ी श्यानवे मुनि कोहि क्यानवे नानिये । लाख बत्तीस म्हप क्यनवे अरु सौ सात प्रमानिये ॥ दोहा-और कहे व्यालीस. सुमरोहिये मझार । जिनवर पृनो भाव सों, घर भवदधि ते पार ॥ ॐ ह्री ज्ञानघरकूट ते श्रीकुंयुनाथ स्वामी और क्यानवे कोहराकोड़ी क्ष्यानवे कोड़ि बत्तीस लाख क्यानवे हजार बरु सातसो शलीस मुनि सिद्धपदपाताय सिद्ध क्षेत्रेभ्यो पर्व ॥ १६ ॥ दोहा-कूट जु नाटक परम शुभ, शोमा अपरम्पार । नईते भरह मिनेन्द्रनी, पहुंचे मुक्त मझार । कोड़ि निन्यानवे मानि मुनि, लाख निन्यानवे और । कहे सहस निन्यानवे, वंदौ