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जैन सिद्धांतसंग्रह ।
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[ २९५ जे मनकायकें । घरहि जन्म न भवमें मायके ॥ ॐ ह्रीं सुभग विद्युठकूटते श्री शीतलनाथ जितेंद्रादि मष्ट कोड़ाकोड़ी व्याळीस लाख बत्तीस हमार नौ से पांच मुनि सिद्धपद प्राप्ताय सिद्धक्षेत्रेभ्यो अ ॥ १० ॥ ढार योगीराता- कूटजु संकुल परम मनोहर श्री श्रीयांस जिनराई । कर्म नाश कर अमरपुरी गये, बंदों शीस नवाई | कोड़ा कोड़ जु है क्यानवे, छयानवे कोड़ प्रमानौ || लाख क्ष्यानचे साढ़े नबसै, इकसठ मुनीश्वर जानो । ताऊपर व्यालीस रहे हैं श्री सुनिके गुन गावै । त्रिविध योग कर जो कोई पूनै सहजानंद पद पावै ॥ ॐ ह्रीं संकुल कूटतें श्रीयांसनाथ जिनेन्द्रादि क्ष्यानवें कोड़ाकोड़ी क्ष्यानवे क्रोड़ श्यानवे लाख साढ़ेनौ हजार उशालीस-मुनि सिद्ध पद प्राप्ताय सिद्धक्षेत्रेभ्यो अर्धं ॥ ११ ॥ कुसुमलता छंद -श्री मुनि संकुल कूट परम सुंदर सुखदाई | विमलनाथ भगवान जहां पंचमगति पाई || सात शतक सुनि और व्यालिस जानिये । सत्तर कोड़ सत काख हजार है मानिये | दोहा-अष्ट कर्मको नाश कर, सुनि अष्टम क्षिति पाय || तिनको मैं वंदन करों, जन्ममरण दुख जाय ॥ ॐ ह्रीं श्री संकुलकूटतें श्री विमलनाथ जिनेंद्रादि सत्तर क्रोड़ सात लाख छैः हजार सातसे व्यालीस सुनि सिद्धपद प्राप्ताय सिद्धक्षेत्रभ्यो अर्षे ॥ १२ ॥ अड्डिल- कूट स्वयंभू नाम परम - सुंदर कहौ । प्रभु अनंत जिननाथ जहां शिवपद कहौ ॥ सुनि जु कोड़ाकोड़ी क्ष्पानवै जानिये । सत्तर कोड़ जु सत्तर लाख वखानिये || सत्तर सहस नु और सातसे गाइये । मुक्ति गये सुनि तिन पद शीस नवाईये ॥ कहे जवाहरदास सुनौ मन लायकेँ । गिरवरकों नित पूजौ मन हरषायकै ॥ ॐ ह्रीं स्वयंभूकूटतें श्री अनंतनाथ