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२९४] जैनसिद्धांतसंग्रह। नद्रादि उनचास कोडाकोडी बहत्तर लाख सात हजार सातसे ब्यालीस मुनि सिद्धपद प्राप्ताय सिद्धक्षेत्रेभ्यो मध ॥ ७॥ दोहा पावन परम उतंग हैं ललित कूट है नाम || चंद्र प्रभु मुक्त गये, वंदो माठी नाम || नवसे अरु वसु नानियो, चौरासी ऋपि मान। क्रौडि बहत्तर रिषि कहे। असी लाख परवान || सहस चौरासी पंच शत | पचवन कहे मुनीश । वसु कर्मनको नाशकर ॥ गये लोकके शीस ॥ ललितकूट शिव गये । वेदों सीस नवाय ॥ तिनपद पूनों भाव सौ, निन हित अर्ब चढ़ाय ॥ ॐ ही • नलितकूटते श्री चंद्रप्रभु मिनेन्द्रादि नवस चौरासी मरब बहत्तर
क्रोड भस्सीलाख चौरासी हनार पांचसै पचवन मुनि सिद्धपद प्राप्ताय मर्ष निर्वपामीति स्वाहा ॥ ८॥ पद्धडी छन्द-सुवरणभद्र सो कूट जान । नहं पुष्पदंतको मुक्त थान ॥ मुनि कोडाकोड़ी कहै जु माख । अरु कहे निन्यानवै चार लाख ॥१॥ सौ सात सतक मुनि कहे सात । रिपि मसी और कहे विख्यात ॥ मुनि मुक्ति गये वसु कर्म काट | वंदी कर जोर नवाय माथ ॥२॥ ॐ ह्रीं श्री सुपभुकूटवै पुष्पदंत जिनन्द्रादि एक कोडाकोडी निन्यानवे काख सात हनार चारसे मस्सीमुनि सिद्धपद प्राप्ताय सिद्धक्षेत्रेभ्यो अर्ष ॥९॥ सुन्दरी छंद-मुभग विद्युतकूत सु मानियै । परम महुवता परमानिये ॥ गये शिवपुर शीतलनाथनी। नमहं तिनपद करी परि मायनी ॥ मुनिवसु कोड़ाफोड़ी प्रमानिये । और नो लाख ब्यालिस नानिये ॥ कहे और जु लाख
बत्तीस 'नू । सहस व्यालिस कहे यतीष जू | और वहस नौसे . ' .पांच सुनानिये गये मुनि शिवपुरकों जु मानिये ॥ करहिं पूजा