________________
जैनसिद्धांतसंग्रह ।
[ २९३ तिनके पद युग पूजत भये ॥ ॐ ह्रीं श्री मानन्दकूटतें अभिनन्दननाथ जिनेन्द्रादि मुनि बहत्तर कोड़ाकोड़ि अरु सत्तर कोड़ि छत्तीस लाख व्यालीस हजार सातसैं मुनि सिद्धपद प्राप्ताय अर्ध निर्वपामीति स्वाहा ॥ ४ ॥ अडिल छंद - भवचल चौथौ कूट महां सुख घाम जी ! जई ते सुमति जिनेश गये निर्वानजी ॥ कोड़ाकोड़ि एक मुनीश्वर जानिये । कोड़ि चौरासी लाख बहत्तर मानिये ॥ सहस इक्यासी और सातसे गाईये । कर्म काट शिव गये तिन्हें सिर नाईये ॥ सो थानक मैं पूजौ मन वच काय
जू । पाप दूर हो जाय अचल पद पायजू ॥ ॐ ह्रीं श्री नवचल . कूटतें श्री सुमति मिनेन्द्रादि सुनि एक कोढाकोड़ि चौरासी कोड़ि बहत्तर लाख इक्यासी हजार सातसे सुनि सिद्धपद प्राप्ताय सिद्धक्षेत्रेभ्यो मई ॥ ९ ॥ भडिल छंद - मोहन कूट महान परम सुंदर कहौ । पद्मप्रभु जिनराय नहीं शिवपद कहौ ॥ कोड़ि निन्यानवे लाख सतासी जानिये । सहस तेताकिस और मुनीश्वर मानिये ॥ सप्त सैकड़ा सत्तर ऊपर बीस जू । कहैं जवाहरदाससु दोय कर नोरेनू ॥ ॐ ह्रीं श्री मोहन कूटर्ते श्री पद्मसु सुनि निन्यानवे कोड़ि सतासी लाख तेतालिस हजार सातसे संताउन मुनि निर्वा
पदप्राप्ताय सिद्धक्षेत्रेभ्यो अर्ध ॥ ६ ॥ सोरठा-कूट प्रमास महान । सुंदर जग मणि मोहनौ । श्री सुपार्श्व भगवान, सुक्ति गये अघ नाश कर ॥ कोड़ा कोड़ी उनचास कोड़ि चौरासी जानिये । लाख़ बहत्तर जान सात सहस अरु सावसे | और कहे व्यालीस हतें सुनि सुक्तिहि गये । तिनकौं नमुं -बित सीस दास जवाहर जोरकर || ॐ ह्रीं ममासकूटतें श्री सुपार्श्वनाथ जि
"