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२९२] जैनसिदांतसंग्रह । बहुते मुनेंद्र ॥ विनकौं करनोर करों प्रणाम | हिनको पूनों उन सकल काम ॥ ॐ ह्रीं श्री सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्रेन्यों मनपद प्राप्ताय म । टार योगीरायसा-श्री सम्मेदशिखिर गिर उन्नत शोभा अधिक प्रमानों । विशति सिंहपर कूट मनोहर भद्भुत रचना मानौ ॥ श्री तीर्थकर बीस तहाँते शिवपुर पहुंचे नाई। तिनके पद पंकन युग पूजों वर्ष प्रत्येक चढ़ाई। ॐ ह्रीं श्री सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्रेम्यो म निर्वपामीति स्वाहा ॥ प्रथम सिद्धवर कूट · मनोहर मानंद मंगलदाई । भनित प्रभु नह ते शिव पहुंचे पनौ मनवचकाई । कोड़ि जु मसी एक पर्व मुनि चौवन काल मुंगाई। कर्म काट निर्वाण पधारे तिनको भर्घ चढ़ाई। ॐ ह्रीं श्री सम्मेद- . शिखर सिद्धकूटते श्री अनितनाथ निन्द्रादि एक अर्व मत्सी कोड़ि चौवन लाख मुनि सिद्धपद प्राप्ताय सिद्धक्षेत्रेभ्यो म निर्व पामीति स्वाहा ॥२॥ धवळ कूट सो नाम दुसरो है सबकौं सुखदाई । संभव प्रभुसो मुकि पधारे पाप तिमिर मिटमाई । धवलदत्त हैं मादि मुनीश्वर नव कोडाकोडि जानौ । दक्ष बहत्तर सहस बयाकिस पंच शतक ऋषि मानौ कर्म नाश कर अमरपुरी गए बंदी सीस नवाई । तिनके पद युग नजों भावसों हपहप चितलाई॥ ॐ ह्रीं श्री सम्मेदशिखिर धवव कूटते संभवनाथ जिनेन्द्रादि नव बेड़ाकोड़ि बहत्तर लाख व्यालिस हजार पांचवे मुनि सिद्धपद प्राप्ताय सिद्धक्षेत्रेभ्यो अर्घ ॥३॥ चौपाई-मानंद कूट महा सुखदाय । प्रभु.अभिनंदन शिवपुर जाय । कोडाकोडि बहत्तर जानौ। . सत्तर कोडि लाख छत्तीस मानौ ॥ सहस बयालीस शतक जु सात । कहें जिनागम में इस माता ए ऋषि कर्म काट शिव गये,