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जैन सिद्धांतसंग्रह |
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सिद्धक्षेत्रेभ्यो संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ॥ १ ॥ तंदुल धवल सु उज्वल खासे धोयके । हेम वरनके थार भरौं शुचि होय ॥ पूजौ शिखिर० । ॐ ह्रीं श्री सम्मेद शिखर सिद्धक्षेत्रेभ्यो अक्षयपदप्राप्तये मक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ३ ॥ फूल सुगंध सु ल्याय हरषसों आन चढ़ायौ । रोग शोक मिट नाय मदन सब दूर पायौ ॥ पूजौ शिखिर० । ॐ ह्रीं श्रीं सम्मेद - शिखर सिद्धक्षेत्रेभ्यो कामबाण विध्वंशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ||४|| षट् रस कर नैवेद्य कनक थारी भर ल्यायो ॥ क्षुषां निवारण हेतु सु पूजौ मन हरषायो || पूजौ शिखिर० । ॐ ह्रीं श्री सम्मेद - 1 शिखर सिद्धक्षेत्रम्यो सुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा || ५ || लेकर मणिमय दीप सुज्योति उद्योत हो । पुनत होत स्वज्ञान मोह तम नाश हो || पुनो शिखिर० । ॐ ह्रीं श्रीं सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्रेम्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥६॥ दस विधि धूप अनूप अग्नि मैं खेबहूं | भष्ट कर्मको नाश होतं सुख पाहूं ॥ पुमो शिखिर० । ॐ ह्रीं श्री सम्मेदशिखर - सिद्धक्षेत्रेभ्यो अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ||७|| केला लोंग · सुपारी श्रीफक ल्याइये । फल चढ़ाय मनवांछित फल सु पाइये ॥ पूजौ शिखिर० । ॐ ह्रीं श्री सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्रेभ्यो मोक्षफलप्राप्ताय फर्क निर्वपामीति स्वाहा ॥८॥ जलगंधाक्षित फूल सु नेवन कीजिये । दीप धूर फळ : अ चढ़ाइये ॥ पूजौ शिखिर० । ॐ ह्रीं श्री सम्मेद शिखर सिद्धक्षेत्रेभ्यो मनपदप्राप्ताय अर्ध निर्वपामीति स्वाहा ॥ ९ ॥
परडी छन्द - श्रीवीस तीर्थंकर हैं जिनेन्द्र । मरु हैं असंख्य
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