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जैनसिद्धांतसंग्रह। न्यादि शर्म इन्द्रीजन लहँ सो शम्म अतेन्द्री पाय। अजर अमर अविनाशी शिवंथल वर्णी ' दौल रहै शिर नाय ॥ इत्यादि आशीर्वादः ॥ (२५) चंकापुर सिद्धक्षेत्र पूजा।
• ॥ दोहा ॥ उत्सव किय पनवार जह, सुरगन युत हरि आय | जो सुथल वसपूज्य सुत, चम्पापुर हर्षाय ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्री चंपापुर सिद्धक्षेत्रभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् इत्याहाननं ॥ १ ॥ अत्र तिष्ठतिष्ठ ठः ठः स्थापनं ॥२॥ अत्र मम सनि: हितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं परिपुष्पांजलिं क्षपेत् ॥
॥ अष्टक || सम अमिय विगत त्रस वारि, लै हिम कुंभ भरा। लख दुखद त्रिगद हरतार, दैत्रय धार धरा ।। श्री वासुपूज्य जिनराय, निवृत थान प्रिया । चंपापुर थल सुखदाय, पूनों हर्षे हिया ॥ ॐ ह्रीं श्री चम्पापुर सिद्धक्षेत्रेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं.॥ काश्मीर नीर मधगार, अती पवित्र खरी। शीतलचन्दन संगसार, ले भत्र तापहरी ॥ श्री वासुपूज्य० ॥ सुगंधं ॥ २॥ मणिद्युत समखंड विहीन, तंदुल लै नीके, सौरम युत नववर वीन, शाल महानीके || श्री वासुपूज्य० ॥ अक्षतं ॥३॥ अलि लुमन शुभन हग घ्राण, सुमन सुरन हुमके। लैवाहिम अर्जुनवान, सुमन दमन झुमके ॥ श्री वासुपूज्य ॥ पुष्प ॥ ४ ॥ रस पुरत तुरत पकवान, पक्व यथोक घृती। क्षुध गदमंद प्रदमन जान, लैविध युक्तकृती॥ श्री वासुपूज्य० ॥ नैवेधं ५॥ तमंअज्ञ प्रनाशक सूर शिव मग परकाशी। लै रत्नदीप