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२७६] जनसिदांतसंग्रह। सुरेश । वय वर्ष तीस पद कुमर काल | सुख द्रव्य भोग भुगते विशाल ॥३॥ मारगशिर अलि दशमी पवित्र । चढ़ चंद्रप्रमु शिवका विचित्र ॥ चलपुरसे सिद्धन शशि नाय । धारो संयम वर शर्मदाय ॥ ४ ॥ गत वर्ष दुदश कर तप विधान । दिन शित वैशाख दशैं महान । रिजुक्ला सरिता वट स्व सोध । उपनायो जिनवर चरम वोध ॥ ५॥ तवही हरि आज्ञा शिर चढ़ाय ! रचियो समवाश्रित धनद राय । चनुसंघ प्रमृत गौतम गनेश । युत तीस वरप विहरे निनेश ॥ ६ ॥ मवि जीवन देशना विविध - देत।आये वर पावानप्र खेत ॥ कार्तिक अलि अन्तिम दिवस ईश। कर योग निरोध अघातिपीश ॥ ७ ॥ है अकल अमल इक समय माहि। पंचम गति पाई श्री जिनाह ॥ तव सुरपति निन.. . रवि अस्त जान । आये तुरंत चढ़ स्व विमान ॥ ८ ॥ कर वपु .. अरचा थुति विविध भांत । लै विविध द्रव्य परमल विख्यात । तव ही अगनींद्र नवाय शशि । संस्कार देहकी त्रिजगदीश || कर भस्म वंदना स्व महीय | निवसे प्रभु गुन चितवन स्वहीय। पुन नर मुनि गनपति आय आय | वंदी सो रम सिर ल्याय ल्याय ॥१०॥ तवहीसे सो दिन पूज्यमान | पूजत मिनग्रह जन हर्ष मान । मैं पुन पुन तिस मुवि शीश धार । वंदो तिन गुणधर उरु मझार ॥ ११ ॥ जिनहीका अब भी तीर्थ एह । वर्तत दायक अति शर्म गेह ।। अरु दुपम काल अवसान वाहि। वत गोमव थित हर सदाहि ॥ १२॥ कुसमलता छंद ॥ श्री सन्मत जिन अंघ्रि पद्म युग जनै भव्य जो मन वच काय । ताके जन्म जन्म संतत, अघ नावहिं इक छिन माहिं पलाय॥ धनधा