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जैनसिद्धांतसंग्रह । [२७५ चंदन उदय संग घिस ल्याइयो । वरपद्मः ॥ सुगंधं ॥ तंदुल नवीन अखंड लीने लै महीने ऊनरे। मणि कुन्दइन्दु तुषारधुत जित कण रकावीमें घरे ॥ वरपद्म० ॥ अक्षत || मकरंद लोमन सुमन शोमन सुरभ चोभन लेयनी । मद समर हरवर अमर तरके प्रान डग हरक्यनी ॥ वरपम० ॥ पुष्पं ॥ नवेद्य गवन छुधा मिटावन सेव्य भावन युत किया। रस मिष्ट पूरत इष्ट सूरत लेय कर प्रभु हिंत हिया ॥ परपम० ॥ नैवेद्य ॥ तम अज्ञ नाशक स्वपर भाशक ज्ञेय परकाशक सही | हिम पात्र में घर मौल्य विनवर घोत घर मणि दीपही ॥ वरपा० ॥ दीपं ॥ आमोदकारी वस्तु सारी विध दुचारी नारनी । तसु तूप कर कर धूप ले दश दिश सुरम विस्तारनी ॥ परपद्म ॥ धूपं ॥ फल भक्क पक्क सुचक्क सोहन सुक्क जनमन मोहने । वर रस पुरत लख तुरत मधुरत लेय कर अत सोहने । वरपा० ॥ फलं || जल गंध आदि मिलाय वसु विध थार स्वर्ण मरांयके । मनं प्रमुद भाव उपाय कर । लै आय अर्घ वनायके । परपद्म० ॥ अर्घ ॥
अथ जयमाला। दोहा-चरम तीर्थ करतार श्री, वर्द्धमान जगपाल । कल मल दल विध विकल हुय, गाऊ तिन जयमाल ॥१॥ पद्धडि छंद। जय जय सुवीर. जिन मुक्ति थान । पावापुर वन सर.शोभवान ॥.. ने शित असाई छर स्वर्गे धाम । तज पुष्पोचर सु विमान ठाम॥ कुंडलपुर सिद्धारथ नृपेश । आये त्रिशला जननी उरेश ॥ शित
चैत्र त्रियोदश युत विज्ञान | जन्म तम अज्ञ निवार भान ॥२॥. - पूर्वान्ह धवल चतु दशि दिनेश । किय नव्हन कनकगिरि शिरं