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________________ १७४ 1 जैनसिद्धांतसंग्रह। नन नन सुर भर सुलेत ॥ •॥ ता थेइ थइ थेइ पग धरत जाय। छम छम छम घुघरू बजाय ॥ जे करहिं निरत इहिं मांत मांत । ते लहहिं मुख्य शिवपुर सुभत ॥ ११ ॥ दोहा-रविव्रत पूजा पाश्चकी, करें भवक जन कोय । सुख सम्पति इहिं मन लहै, तुरत सुरग पद होय ॥ अडिल । रविव्रत पाच मिनेन्द्र पूज्य भव मन घरे । भव भवके मानाप सकल छिनमें टरें। होय सुरेन्द्र नरेन्द्र आदि पदवी लहै । सुख सम्पति सन्तान अटल लक्ष्मी रहै। फेर सर्व विषं पाय भक्ति प्रभु अनुसरें। नानाविष सुख भोग बहुर शिव त्रियवरै ।। इत्याशीवायः॥ [२४] फाकापुर सिद्धक्षेत्र पूजा। दोहा-निह पावापुर छिति अपति हत सन्मत नगदीश । भये सिद्ध शुभ पानसो, जनों नाय निज शीश ॥ ॐ ही श्री पावापुर सिद्धक्षेत्र अत्र अवतर अवतर: अत्र तिष्ठ २ स्थापनं । अत्रममसन्निहितो भवभववषट सन्निधिकरणं परि पुप्पाञ्जलिं क्षिपेत् । अथ अष्टक | गीतका छद ॥ शुचि सलिल शीतो कलिल रीती अमन चोतो ले जिसो । मर, कनक झारी त्रिगद हारी दै त्रिधारी मित तृषौ ॥ पर पद्मवन भर..पद्मसरवर वहिर पावापामही । शिव घाम सन्मत स्वाम पायो जजों, सो सुखदामही ही श्री पावापुर क्षेत्रे वीरनाथ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥जल। भव भ्रमत भ्रमत अशर्मा तपकी तपन कर तप ताईयो। उसु वलय कंदन मलय
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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