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जैनसिद्धांतसंग्रह। [२७३
अथ जयमाला। .. दोहा। यह जगमें विख्यात हैं, पारसनाथ महान | मिनगुनकी जयमालका, भाषा करों वखान ॥ पद्धरी छंद ॥ जय जय प्रणमो श्री पार्श्व देव । इन्द्रादिक तिनकी करत सेव ॥ जयं जय सु बनारस जन्मलीन । तिहुँ लोक विषे उद्योत कीन || जय जिनके पितु श्री विश्वसेन । तिनके घर भये सुख चैन एन ।। जयं वामादेवी, माय जान । तिनके उपने पारस महान ॥१॥ जय तीन लोक आनन्द देन । भविजनके दाता भये हैं पेन ॥ जय जिनने प्रभुका शरन लीन । तिनकी सहाय प्रभुनी सो कीन ॥ ३ ॥ जय नाग नागनी भये अधीन । प्रभु चरणन लाग रहे प्रवीन ॥ तजके सो देत. स्वर्ग सुनाय । धरनेंद्र पद्मावति भये आय ॥ ४ ॥ जे चोर अंजना अधम जान । चोरी तन प्रभुको घरों ध्यान ॥ मृत्यु भयें स्वर्ग सु जाय । रिद्ध अनेक उनने स पाय ॥ ५ ॥ ने मतिसागर इक सेठ जान । जिन रविवृत पूजा करी ठान । तिनके सुत थे परदेशमाहिं । मिन अशुभ कर्म काटे सु ताहि ॥ ६ ॥ जे रविवृत पूजन करी शेठ । नाफलकरं सबसे भई भेठ । जिन जिनने प्रभुका शरन लीन । तिन रिद्धि'सिद्धि पाई नवीन ।॥ ७ ॥ जे रविवृत पूना करहिं जेय । ते. सुख्य अनंतानन्त लेय ॥ धरने द्र पद्मावति हुय सहाय। प्रभु भात जोन तत्काल आय ॥ पूना विधान इहिं विध रचाय । मन वचन काय तीनों लगाय || नो भक्तिभाव जमाल गाय । सोही सख सम्पति अतुल पाय ॥ ९ ॥ बानत मृदंग वीनादि सार । गावत नाचत नाना प्रकार ॥ तन नन नन नन नन ताल देत । सन
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