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२७८] नैनसिद्धांतसंग्रह। युत पूर, अनुपम सुखराशी ॥ श्री वासु. ॥ दीपं ॥१॥ वर परमल द्रव्य बनूप, सोध पवित्र करी। सुचूरण कर कर धूप, लैविध कनहरी ॥ श्री वासु० ॥ धूपं ॥ ७ ॥ फल पश्व मधुररस वान, प्रामुक बहुविधके । ख मुखद रसन हग धान, लेपद पद सिधके । श्रीवासु० ॥ फलं ॥ ८ ॥ जल फल वा द्रव्य मिलाय, हेमर हिमधारी | वसु अंग धरा पर ल्याय, प्रमुद व चितधारी॥ श्री वासु. ॥ अर्थ ॥
अथ जयमाला ॥ दोहा ।। भये द्वादशम तीर्थपति, चंपापुर निर्वाण | तिन गुणकी जयमाल कछु, कहों श्रवण सुख दान | पद्धडिछन्द । जय जय श्री चम्पापुर सु धाम। जहां राजत नृप चपून नाम ।। जनपान पल्यसे धर्महीन । भवभ्रमन दुःखमय लख प्रवीन ॥१॥ उर करुणाघर सो तम विडार । उपज किरणावलि घर अपार॥ श्रीवासुपूज्य तिन तने वाल। द्वादशम तीर्थ का विशाल ॥२॥ भवमाग देहसें विरत, होय । वय वाल माहिं ही नाथ सोय ॥ सिद्धन नम महंत भार लीन । तप द्वादश विध उग्रोम कीन ॥ तह मोह सप्तत्रय आयु येह । दशप्रकृति पूर्व ही क्षय करेह ॥ श्रेणी क्षपक आरूढ़ होय गुण नवम भाग,नव माहि सोय ॥ ४॥ सोलह वसु इक इक पट इकेय । इक इक इक इम इन क्रम सहेय ॥ पुन दशम थान इक लोमटार । द्वादशम थान
सोलह विडार ॥ ५॥ है अनंत चतुष्टय युक्त स्वाम । पायों सब . · सुखद-संयोग ठाम ।। तहं काल निगोचर सर्व गेय । युगपत हि. . . समय इक महि लखेय ॥ ६ ॥.क्छु. काल दुविध वृष अमिय.