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२७०] जैन सिद्धांतसंग्रह। गिरि नीचे मिन मंदिर सुचार । ते यतिन रचे शोमा अपार ॥ तिनके पति दी घ चौक नान । तिनमें यात्री मे तु मान ॥२॥ गुमठी छज्जे शोभिन अनुर | बन पंनि मोहें दिविषरूप ॥ बनु प्रातिहार्य वहां घरे भान । सब मंगद्रव्यनि की मुखान ॥३॥ दरवानॉपर नशा निहार । नेर नुनय जय बनि उचार ॥ भर पर्वतको चढ़ चलो जान | दग्वानो तहां इक शेममान In तिस पर निन प्रतिमा निहार । तिन वंद्य पून मागे सिधार ॥ वहां दुःखित मुतिनको देव दान । याचक मन नहीं मानाण ॥ मागे जिन मंदिर दुहु और । निन गान होत वामित्र शोर ॥ दरबानो वहां दृगो विशाल । दहा क्षेत्रपाल दोड जोर लालंपा दरवाजे भीतर चौक माहि। मिन भवन रचे प्राचीन आई। तिनकी महिमा चरणी न जाय । दो कुंड सुजलकर मतिनुहाय ॥ निन मंदिराची वेदी विशाल । दरवानो तीने बहुमुवाका ना दरवाजे पर द्वारपाल । लेनुट खड़े मत हाय माउ ॥ ८॥ जे दुर्जनको नहीं जान देय ! ते निंदकको ना दरश देय ॥ च: चंद्ररमृर चौधमाहि । दाहाने तहां चौ त माहि ॥९॥ वहां भव्य समानंहप निहार । विसची रचना नाना प्रकार रहा जामु दश पाय । फल नात लहो नरमन्न भाय ॥१.. प्रतिमा विसत नहां हाथ सात । कायोततर्ग मुद्रा नुहान । व पर्ने न्हा दय दान ! जनतृत्व मननकर मर गान ॥११॥ ताई येई ई कानन सितार । मृदंग वीन मुहवंग सार ॥ जिनकी ध्वनि जुन मवि होर प्रेमानपकार मरतनाचत एम ॥१२ वे स्वति कर फिर नाय शील । मवि च मनोकर कर्न खी।