________________
जनासद्धान मंग्रह |
दोहा- सोनागिरिके श्रीसपर । जेते सब जिनराज |
[ २६९.
करों दीपले भारती । ज्ञान प्रकाशन कान || दीपं ॥६॥ - दशविधि धूप अनूप अग्नि भाननमें ढालों ।
जाकी धूम सुगन्ध रहे भर सर्व दिशाकों ॥ दोहा- सोनागिरिके शीसपर । जेते सब मिनराज ॥
धूप कुम्भ भागे घरों । कर्म दहनके काम ॥ धूपं ॥ उत्तम फक जगमाहिं बहुत मीठे अरु पाके । भमित अनार अचार मादि अमृत रस छाके ॥ दोहा- सोनागिरिके शीसपर । जेते सत्र जिनराज | उत्तम फल तिन ले मिळो । कर्म विनाशन कान ॥ फलं ॥ ८ ॥ नक आदिक व द्रव्य अर्ध करके घर नाचो । बाजे बहुत बजाय पाठ पढके सुख सांचो ॥ दोहा- सोनागिरिके शीसपर नेते सब जिनराज ।
ते हम पू अ ले । मुक्ति रमणके कान ॥ मर्ध ॥९॥
अडिल - श्री जिनवरकी भक्ति सो जे नर करत हैं । फलवांछां कुछ नाहिं प्रेम उर घरत हैं | ज्यों जगमाहिं किसानसु खेतीको करें । नाम कान जिय जान सुशुम आपही झरें ॥ ऐसे' पूमा दान भक्ति वा कीजिये । सुख सम्पति गति मुक्ति सहनकर लीजिये !! ॐ श्री सोनागिरिसिद्धक्षेत्रम्यो पूर्णार्थ ॥१०॥ अथ जयमाला |
दोहा - सोना गिरिके शीसपर । जिन मंदिर अभिराम | तिन गुणकी जयमालिका । वर्णत आशाराम ॥ १ ॥