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________________ २६८] MANMAL जैनमिद्धांतसंग्रह। चन्द्र प्रभु जिन मादि सकल जिनवर पद पूनों। स्वर्ग मुक्ति फल पाय नाव अविचक पद हूमों॥ दोहा-सोनागिरिके शीमपर, जेने पत्र निनराय । तिनपद धारा तीन दे, विविध रोग नश जाय ॥ ॐही श्रीमोनागिरि निर्वाणक्षेत्रेभ्यो ।। जर्क ॥ १ ॥ केशर मादि कपूर मिले मलयागिरि चन्दन । परमल अधिकी तास और मय दाह निधन्दन । दोहा-सोनागिरिके शीमपर | जेने पर जिनराम । ते सुगन्ध पूनिये, दाह निकन्दन कान | सुगंधं ॥२॥ तंदुन धवन सुगन्ध गाय नल घोय पखारो। अक्षय पदक हेतु पुन हदा तहां पारो ॥ दोहा-सोनागिरिक शीपर | जेने सर मिनराज । तिन पद पूना कीनिये । अक्षय पदके कान अक्षman वेला और गुलाब मालती कमल मंगाये । पारिजातके पुप्प ल्याय जिनचरण चढ़ाये ॥ दोहा-सोनागिरके शीसपर । नेते सब जिनराज । ते सव पूनों पुष्प ले । मदन विनाशन कान [पुष्पा॥ विमन जो जगमाहि खांड घृत मांहि पकाये। मीठे तुरत वनाय हेम थारी भर पाये ॥ दोहा-सोनागिरिके शीसपर । जेते सब जिनराम । .. ते पृनों नैवेध ले । क्षुषा हरणके कान ॥ नैवेद्यं ॥५॥ मणिमय दीप प्रनाल धरौं पंकति भरथारी। निन मंदिर तमहार करहु दर्शन नरनारी ॥
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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