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जैनसिद्धांतसंग्रह !
श्रीमक्सी पारसनाथ, मन वच ध्यावत हों ।
मन वच तन शुद्ध लगाय, तुम गुण गावत हों ॥ पुनं ॥ 8 ॥
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समथाक सुवे वजधार, उज्ज्वल तुरत किया ।
लाडू मेवा अधिकार, देखत हर्ष हिया ||
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श्रीमक्सी पारसनाथ, मन वच पूज करों । मम क्षुबा रोग निर्वार, चरणों चित्त घरों ॥ नैवेद्यं ॥ १॥
वर धूप दशांग बनाय, सार सुगंध सही ।
मति हर्ष भाव ठर ल्याय, अग्नि मंझार दही ॥
अति उज्ज्वक ज्योति जगाय, पूजत तुम चरणा । मम मोहांधेर नशाय, आायो तुम शरणा ॥
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श्री मक्सी पारसनाथ, मन वच ध्यावत हों । तुमहो त्रिभुवनके नाथ, तुम गुण गावत हों | दीपं ॥ ६ ॥
श्रीमक्सी पारसनाथ, मन वच ध्यावत हों ।
वसु कर्महि कीजे क्षार, तुम गुण गावत हों ॥धु॥ ७ ॥ .
बादाम क्षुहारे दाख, पिस्ता ल्याय घरों ।
ले नाम अनार सुपक्व, शुचिकर पूज करों ॥
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श्रीमती पारसनाथ, मन वच ध्यावत हों ।
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शिवफल दीने भगवान, तुम गुण गावत हों ॥ फलं ॥८॥
जल आदिक द्रव्य मिळाय, वसुविधि अघं किया ।
घर सान रचो ल्याय, नाचत हर्ष हिया ॥ .
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श्रीमती पारसनाथ, मन वच ध्यावत हों ।
!" तुम भव्यों को शिव साथ, तुम गुण गावतं हों ॥ अर्ध ॥२॥