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जैनसिदांवसंग्रह। अडिल्ल-नक गंधाक्षत पुष्प सो नेवन त्यायक।
दीप धूप फक लेकर वर्ष बनायके। नाचों गांय बनाय हर्ष उर धारकर । पुरण भर्ष चढाय मु भयंजयकार कर पूर्णीषार॥
'जयमाला। दोहा-जयजयजय जिनरायनी, श्रीपारसपामेश। . . गुण अनंत तुममाहि प्रभु, पर पछु गाऊ श॥१॥
पद्धडि छन्द । श्रीवानाम नगरी महान । मुरपुर समान मानो सुथान। . वहां विश्वसेन नामा सुमूए । बामादेवी रानी अनूप ॥२॥ माये तनु गौवर्षे सुनव । वैशाखपदी. दोहन स्वयमेव । माताको सेवें मची मान । माज्ञा तिनकी घर शीश मान ॥शा पुन: मन्म भयो मानंदकार । एकादशि पौष वदी विचार।। त इन्द्र माय मानंद धार । नन्माभिषेक कीनो सुसार ॥ शतप सनी तुम मायु नान । कुंवरावय तीस बरस -प्रमाण ॥ नव हाथ तुग रामत शरोर । तन हरित वग्ण मोहै सुधीर ॥५॥ तुम रग हि वर उरग सोई । तुम रामऋद्धि भुगती न कोई । तपधारा फिर आनंद पाय । एकादशि पौष वदी सुहाय ॥६॥ फिर कर्म पतिया चार नाश। वर केवलज्ञान भयो प्रकाश। यदि चत्र चौथ वेला प्रभात। हरिसमोसरण रचियो विख्यात ॥ माना रचना देखन सुयोग । दर्शनको भावत अन्य लोग ।।. सावन मुदि सममि दिन मुषारिरातन विधि अपातिया नाश.चारिका