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________________ जैनसिद्धांतसंग्रह । [२५१ नाश पचीस कषाय करी हैं। देशवाति छब्बीस हरी हैं। तत्व दरब सत्ताइंस देखे । मति विज्ञान मठाइस पेखे ॥८॥ उनतिस अंक मनुष सब जाने । तीस कुलाचल सर्व बखाने । इकतिस पटल सुधर्म निहारे । बत्तिस दोष समायिक टारे ॥९॥ वेविस सागर सुखकर माये । चौतिस भेद.मलब्धि बताये। पैतिस मच्छर जप मुखदाई । छत्तिस कारन रीति मिटाई ॥१०॥ सैतिस मग कहि ग्यारह गुनमें । अठतिस पद लहि नरक अपुनमें ।।.. उनतालीस उदीरन तेरम | चालिस भवन इंद्र पूर्फ नम ॥११॥ इकतालीस भेद माराधन । उदै वियालीस तीर्थकर मन ।। तालीस बंध ज्ञाता नहिं । द्वार चवालिस नर चौथेमहि ।।१२॥ पैतालीस पत्यके मच्छर । छियालीसों बिन दोष मुनीश्वर ।। नरक उदैन छियालीस मुनिधुन । प्रकृति छियालिस नाश दशेम गुन' ॥ १३ ॥ छियालीस घन राजु सात भुव । अंक छियालीस सरसों कहि कुछ। भेद छियालीस अतर तपवर। छियालिसों पुरन गुन निनवर ॥१४॥ अडिल-मिथ्या तपन निवारन चन्द समान हो मोहतिमिर वारनको कारन भानु हो ।। काल कषाय मिटावन मेष मुनीश हो 'धानत' सम्यकरतनत्रय गुनईश हो।॥ १५॥ .. ॐ हीं मष्टादशदोषरहितषट्चत्वारिंगगुणसहित श्रीनिनेन्द्रभगवदम्यो पूर्णा निर्वपामि ॥ (पर्णायके बाद विसर्जन करना चाहिये)
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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