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२५०] नसिद्धांतसंग्रह । समते नोरावर, अंतराय मरि, सुफळ विन करि दारत हैं। फलपुन विविध भर, नयनमनोहर, श्रीमिनारपद धारत हैं।
ॐही मष्टादशदोपरहिषट्चत्वारिंशदगुणसहितश्रीमिनेम्यो मोक्षफलप्राप्तये फळ० ॥ माठौं दुखदानी, आठनिशानी तुम टिग पानि निवारन हों। दीनननितारन, अधमउधारन, 'गनत' वान कारण हो । प्रमु.
ही महादशदोपरहितपट्चत्वारिंशद् गुणसहितश्रीमिनेन्द्रभगवद्भ्योऽनपदप्राप्तये मध्य निर्वपामीति स्वाहा ॥९॥
जयमाला। गुण अनंत को कहि सक, छियालिस मिनराय ।
प्रगट मुगुन गिनती हूं, तुम ही होहु,सहाय ॥ १॥ एक ज्ञान केवल मिनस्वामी । दो बागम अध्यातम नामी ।। तीन काल विषि परगट नानी । चार अनंतचतुष्टय ज्ञानी ॥२॥ पंच पावर्तन परकासी। छहों दरवगुनपर्नयमामी ॥ सातमंगवानी परकाशक | माठों कर्म महारिपुनाशक ||३॥ नव तत्त्वनकै माखनहारे । दशरच्छनौं भविजन तारे ॥ ग्यारह प्रतिमाके उपदेशो। बारह समा सुखी अकलेशी ॥ ४ ॥ तेरहविधि चारितके दाता । चौदह मारगनाके ज्ञाता॥ . पंद्रह भेद प्रमाद निवारी । सोलह मावन फळ भविकारी॥ ॥ वारे सत्रह अंक भरत भुव । ठारै थान दान दाता तुव ।। भाव उनीस तु हे प्रथम गुन । वीस अंक गणपरनीकी धुन ॥९॥ इकइस सर्व पातविधि मान । बाइस विष नवमै गुन थाने । तेइस निषि मरु रतन नरेघर । सो पमै चौवीस मिनेश्वर ॥७॥