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. जनासद्धावसंग्रह।
" (१६) निर्वाणक्षेत्र पूजा। सोरठा-परम पूज्य चौवीस, जिह जिह थानकं शिव गये।
- सिद्ध भूमि निशदीस, मनवचतन पूजा करों ॥१॥
ॐ ह्रीं चतुर्विशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्राणि | पत्र अवतर नवतर: संवौषट् । ॐ ही चतुर्विशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्राणि? मत्र तिष्ठ विष्ठ । काठः। ॐही चतुर्विशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्राणि मत्र मम सन्निहितो भव भव | वषट् ।
गीता छंद। शुचि क्षीरदधिसम नीर निर्मल, कनकझारीने भरौं ।
संसारपार उतार स्वामी, मोर कर विनती करौं । सम्मेदगिरि गिरनार चंपा, पावापुरि कैलामकौं ।
पनों सदा चौवीसमिननिर्वाणमूमिनिवासकौं ॥१॥ . ॐ ही चतुर्विशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो जलं ॥ १ ॥
केशर'कपूर सुगंध चंदन, सलिक शीतल विस्त ।। भवपापको संताप मेटौं, नोर कर विनती करौं सम्मेाशा
ॐ ह्रीं चतुर्विशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो चंदनं ॥२॥ मोतीसमान अखंड तंदुल, अमल मानदधरि तरौं । भौगुन हरौ गुन करौ हमको, नोर कर विनती करौं सम्मे॥३॥
ॐही चतुर्विंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो अक्षतान् ॥३॥ शुभफूलराम सुवासंवासित, खेद सब मनके हरौं। बुखधाम काम विनाश मेरो, नोर कर विनती करौं ।सम्मे ।