________________
४ ] जैनसिद्धांतसंग्रह। ." ही चतुविशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यः पुष्पं ॥ ४॥
नेवन भनेक प्रकार जोग, मनोग परि भय परिहरौं । यह मुखदुखन टार प्रभुनी, नोर कर विनती करौं सम्मे-11॥
ॐ ह्रीं चतुर्विशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो नवेचं ॥५॥ दीपक प्रकाश टनाप उज्जल, तिमिरसेती न िडौँ। मंशयविमोहविमर्म-वमहर, नोरकर विनती करौं सम्मे॥९॥
ॐही चविशतित थैकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो दीपं ॥१॥ . शुभ धूप परम भनूर पावन, भाव पावन माचरौं। सब करमपुंन जलाय दीजे, मोर कर विनती करों। सम्मे० ॥७
ॐ ह्रीं चविंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो धूपं ॥७॥ बहु फल मगाय चढ़ाय उत्तम, चारंगतिसों निरव ।। निहचे मुस्तफल देहु मोकौं, जोर कर विनती की। सम्मे० ॥८
ॐ ही चतुर्विशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेम्यः फलं ॥॥ . जल गंध अच्छत फूल चरु फल, दीप धूपायन घरों। बानत' करो निर्भय नगवे, मोर कर विनती करौं। सम्मे• ॥९॥ ॐ ही चतुविशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रभ्यो मध्ये ॥९॥
अथ जयमाला। सोरग-श्रीचौबीसमिनेश, गिरिकलासादिक नमों। :
वीरथ महारदेश महापुरुष निर्वाणते ॥१॥ नों रिषम फैलासपहारं । नेमिनाथ गिरनार निहारं । मामुपज्य चपाएर दौं। सनमति पावापुर जमिनदों ॥१॥ ..