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अनसिद्धांतसंग्रह।
सहस वश महां. नोनन लखत ही मुखं ॥ पावरीकोंन दोमाहि दो रतिकरं । भान०॥ ५॥
शैल बत्तीस इक सहस नोजन कहे। चार सोले मिले सर्व बावन लहे ॥
एक इक शीशपर एक मिनमदिरं । भवन ॥१ विंब मठ एकसौ रतनमई सोहही।
देवदेवी सरव नयनमन मोह ही॥ पांचसे धनुष तन पद्ममासनपरं ।। भवन ॥ ७॥
काक नख मुख नयन स्याम मरु स्वेत है। स्यामरंग भोह सिरकेश छवि देत हैं।
___ वचन बोलत मनों हसत कालुपहरं ॥ भवन ॥८॥ कोटिशशि मानधुति तेम छिप जात हैं।
महांवराग परिणाम ठहरात हैं। बयन नहिं कहैं कखि होत सम्यकपरं । भवन०॥९॥
सोरठा।
नंदीश्वर निनघाम, प्रतिमामहिमाको कहें। 'चानत' लीनों नाम, यहै कि शिवमुख कर ॥१०॥
ॐ ह्रीं श्रीनन्दीश्वरहीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणे द्विपञ्चाशजिनालयस्थजिनप्रतिमाग्यः पूर्णाध निर्वपामीति स्वाहा।
[मयके बाद विसर्जन करना चाहिये ]