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जनसिद्धांतसंग्रह । ' . [१४५' रुद्रदत्तबर वही महीदत्त मुत. उसनो' सही ॥ १९ ॥ खोटी: संगतिके बश होय । सबै कुलक्षण.सीखो सोय। सबै कुव्यसन करैन कान । बहुत द्रव्य खोयो बिन ज्ञान ॥१६॥ मात पिता . तब दियो निकास !. मामाके घर गयो निरास ॥ तिन भी तहां, न आदर कियो । शीश फेर पा आगे दियो ॥१७॥ मारगके वश पहुंची सोय । जहां बनरसको बन होय ॥ भेटे साधु अशुभ अवसान | नमस्कार कीनो तन मान || |पूंछ महीदत्त सिर नाय । मैं क्यों दुखी भयो मुनिराय ॥ पर उपकारी मुनिमन सही। पूरब जन्म कथा सब कही ||१९| निशमोजन ते विरघो पाप ।'तांत भयो जन्म संताप ॥ फिर तिन दियो धर्म उपदेशजति बहुर न होय कलेश ॥२०॥ गुरुकी शिक्षा ग्रह व्रत लये। . मनके दुक्ख दूर सब गये ॥ कर प्रमाण आयो निज गेह । मात पिता अतिकियो मनेह ॥१॥ स्वजन लोक मन अवरज भयो। देख. सुलक्षण सत्र दुख गयो । राना बहुत कियो सनमान । भयोविष सुत सब सुख मान ॥१॥ बढ़ी संपदा पुन्यसंयोग । छहों कर्म साधे पुनि योग । कियो देव मदिर बहु भाय । सुवरणमय प्रतिमा पधराय ॥ २६ ॥ धर्म शास्त्र लिखवाए जान। बहुबिध दियो सुपात्रहि दान ॥ ऐसे धर्महेत धन वोय । उपजो
' १३ बड़का वीज जरासा होता है और उसके बोनेसे पेड़का विस्तारं बहुत ही बड़ा होजाता है। यही हाल पापा है, जो करते वक्त तो अपने को बड़े चलाक समझकर खुश होते है और जब भोगना पड़ता है, नरकों निगोदोंका दुख तब रोते है ! याद करते हैं ! हाय ! मैंने ऐसे पाप क्यों करे, पतु 'फिर पछताये होत क्या चिड़ियां चुन गई खेत ॥
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