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जैन सिद्धांत संग्रहः
विनयसः नगरी तने । न्योतः निमाये, ब्राह्मण धने ॥ वानः सात सबद्दीको दियो । आप विम भोजन नहि कियो ||४|| इतने रॉक पठायो दास । मोहित गयो रायके पास 11. राम कान कछु ऐसो भयो । करत करावत सब दिन यो ॥ ५ ॥ निशिमें नारि- रसोई करी । चूल्हे ऊपर हांड घरी ॥ हींग लैन उठ बाहर गई: यहां विधाता औरहि उई ॥ ६ ॥ मैडक उछल परो तामाहिं । विभि तहां कछु भानो नाहिं | बैंगन छोक दिये तत्काल । मैडक सरो होय बेहाल ॥ ७ ॥ तबहु विम नहिं आयो धाम । घरी उठाक रसोई ताम ॥ पराधीनकी ऐसी बात । औसर पायो आधी रातः ॥८॥ सोय रहे सब घरके लोग. आग न दीवा कर्म संयोग | भूखो प्रोहित निकस प्रान । ततक्षण बैठो रोटी खान | ९|| बैंगन, भेले लीनो पास । मैडक मुंहमें आयो तास ॥
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दांतन. तले चबो:
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नहि जब । काद घरो थाली में तबै ॥ १० ॥ प्रात हुए मैंडक' पहिचान । तौमी विप्र न करो गिलान ॥ थिति पूरी कर छोड़ी' काय || पशुकी योनि उपनो आय ॥ ११ ॥
सोरठा- घूघू कागे बिलावै सःबर गिरैष पखेरुवा । सुर्कर अजगर भाव, वार्ष गोई मलमें मंग॥ १२॥ दश भव इहि विघ थाय, दस जन्म नरकहि: ग्रयां । दुर्गति कारण पाय, फलो पाप वट बीजवत् ॥ १३॥ .. १४...
चौपाई - देशनाम करहाट सुखेतः । कौशल्या नगरी छबि देत ॥ तहां संग्राम शूर भूपाल । बिना युद्धं बीते रिपुनाल ॥ १४: रामा मोहित लोमस नाम । तार्के तिय लोमा अभिराम ॥ तिनकैः