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१३८] जैनसिद्धांतसंग्रहां डावा दांक कलां विस्फोटक डांकनसे बचं नावे | तो यौवन भामिनके संग निशिदिन भोग रचाये। अन्धा हो धन्धा दिन खोकः वृद्धा नाहि हलावे ॥ यम पकड़े तब भार न चाळे सन हीसन मवावे । मन्द कषाय होय तो माई भवनत्रक पद पावे ॥ परकी सम्पति लखि अति झुरके रति काल गमावे। आयु अन्त माला मुरझावे तव लख लख पछतावे ॥६॥ वहांसे चलके थावर होने रुलता काल अनन्ता । या विधि पंच परावर्तन दे दुखका नाही. मन्ता । काललब्धि मिन गुरु उपासे आप आपको बाने। तब ही बुधनन भवोदषि तरके पहुंच बाय निर्वाणे ॥ ७॥
अथ तृतीय ढाल। बिसमें सम्यक होनेका वर्णन है। । इसविधि भववनके माहि जीव । वशमोह गहल सोग सदीय । उपदेश तथा सहनहि प्रबोष | तव नागो ज्यों रण उठतं योष १॥ तव चिन्तत अपनेमाहि आप । मैं चिदानन्द नहि पुण्यपाप ॥ मेरे नाही हैं संगमाव । ये तो विधिवस उपमें विमाव ॥॥ मैं नित्य निरंजन शिव समान । ज्ञानावरणी-आच्छादा ज्ञान | निश्चय शुद्ध इक व्यवहारमेव । गुणगुणी अंग अंगी अतेव ॥३॥ मानुष सुर नारक पशु पर्याय । शिशु ज्यान वृद्ध
५ विस्फोटक-बच्चोंको माता याने पंचकका निकलना सख देखना-भवनत्रक पद । व्यंतर, ज्योतिषी, भवनवासी, इन तीन प्रकारके देवोंको कहते है।
शादानाक लिया । अर्थात ज्ञानावरणी-कर्म ज्ञानको के है। ३। मेव मेद (फरक) भतेव-सी वास्त, मर्याद बीद. और पर
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