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________________ १] जैनसिद्धांतसंग्रह। दोहा-माल भई भगवन्तंकी, पाई संग नरिन्द ।', लालाविनोदी उच्चरे, सबको नयति जिनंद ॥२४॥ , माला श्री मिनराजकी, पाव पुण्य संयोग। . यश प्रघटै कीरति बढ़े, धन्य कहैं सबलोग ॥२५॥ (१६) पातकालकी स्तुतिह। वीतराग सर्वज्ञ हितकर भविजनकी अब पूरो आस । ज्ञानमानुका उदय करो मम मिथ्यातमका होय विनाश ॥१॥ जीवोंकी हम करुणा पालं झूठ वचन नहीं कहें कदा । . परधन कबई न हरहुं स्वामी ब्रह्मचर्यव्रत रहे सदा ॥२॥ तृप्णा लोम बड़े.न हमारा तोप सुधा नित पिया करें। . श्री जिनधर्म हमारा प्यारा सिसकी सेवा किया करें ॥ ३ ॥ दूर भगावें वुरी रीतियां सुखद रीतिका करें प्रचार । . भेल मिलाप बढ़ा हमसब धर्मोन्नतिका करें प्रचार ।। ४ ॥ सुखदुःखमें हम समता परि रहें अचल निमि सदा अटल.। न्यायमार्गको लेश न त्यागें वृद्धि करे निन आतमपल |.५॥ अष्टकर्म जो दुःख देत है तिनके क्षयका करें उपाय । नाम आपका जपें निरंतर विनरोग सब ही टर जाय ॥ ६॥ आतम शुद्ध हमारा होने पाप मैल नहिं चढ़े कदा । । विद्याकी हो उन्नति हममें धर्मज्ञान हू बढ़े सदा ॥७॥ हाय जाड़कर शीस. नवावें तुमको भविजन खड़े खड़े। यह सब पूरो आस हमारी चरण शरणमें आन पड़े ॥ ८॥.
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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