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________________ जैनसिद्धांतसंग्रह । [ १०३ श्रीगुरु उरु समभाव घारके, अपनो रूप सम्हालो ॥ - यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित धारी । तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्युमहोत्सव वारी ॥ ४६ ॥ सात शतक मुनिवरने पायो, हथनापुरमें जानो । बलिब्राह्मणकृत घोर उपद्रव, सो मुनिवर नहिं मानो || यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित घारी । तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्युमहोत्सव वारी ॥ १७ ॥ लोहमयी आभूषण गड़के, तातेकर पहराये । पांचों पाण्डव मुनिकेतनमें तौ भी नाहिं चिगाये || • यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित घारी । तौ तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्युमहोत्सव वारी ॥ ४८ ॥ और अनेक भये इस जगमें, समता रसके स्वादी । वे ही हमको हो सुखदाता, हरहें टेव प्रमादी || सम्यकदर्शन ज्ञान चरण तप ये, आराधन चारों । ये ही मोकों सुखकी दाता, इन्हें सदा उर धारों ॥ ४९ ॥ यो समाधि उरमांही लावो, अपनो हित जो चाहो । तज ममता अरु आठों मदको जोतिस्वरूपी ध्यावो ॥ जो कोई निज करत पयानो, ग्रामांतर के काजे । सो भी शकुन विचारे नीके, शुभ शुभ कारण साने ॥ ५० ॥ मात पितादिक सर्व कुटुमसो, नीके शकुन बनावें । हलदी धनिया पुंगी अक्षत, दूध दही फल लावें ॥ एक ग्रामके कारण एते, करै शुभाशुभ सारे । - जब परगतिको करत पयानो, तब नहिं सोचे प्यारे ॥ ११ ॥
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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